सोमवार, 30 मार्च 2015

33 कोटि देवताओं का रहस्य

हिन्दू धर्म में ३३ कोटि देवी-देवता हैं । ऐसे में किस देवता के जप से शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति संभव है, आज इस बिन्दु पर हम विचार करेंगे । यदि हमने किसी संत या गुरु से गुरु मंत्र लिया है तो उसका जप करना चाहिए और यदि नहीं लिया है तो गुरु ढूँढने का प्रयत्न नहीं चाहिए, क्योंकि कलियुग में ९८ प्रतिशत गुरु ढोंगी होते हैं और कोई अध्यात्मविद संत हैं या नहीं, यह हमें ज्ञात हो जाय, इसके लिए या तो हमारे पास सूक्ष्मका ज्ञान हो या साधनाका ठोस आधार हो, जो साधना की आरंभिक अवस्था में हमें नहीं होता है।
  • कुल देवता

अतः गुरु बनाने के फेर में पड़ने के स्थान पर, अध्यात्म शास्त्र अनुसार साधना करने का प्रयास करना चाहिए, और सनातन धर्म में इसका अत्यंत सुन्दर विधान है। सभी को अपने कुलदेवता का जप करना चाहिए । कुल देवता की व्युत्पत्ति और अर्थ देख लेते हैं । कुल, अर्थात मूल और मूलका संबंध मूलाधार चक्र, या कुण्डलिनी शक्ति से होता है । कुल + देवता, अर्थात जिस देवता की उपासना से मूलाधार चक्र जागृत होता है, अर्थात कुंडलिनी शक्ति जागृत हो जाती है, अर्थात आध्यात्मिक उन्नति आरम्भ होती है, उन्हें कुलदेवता कहते हैं। कुलदेवताके तत्त्व में सभी 33 कोटि देवता के तत्त्व समाहित होते हैं । अतः कुलदेवता के जप से उन तत्त्व की 30% तक वृद्धि हो जाती है और यह जप पूर्ण होने पर, गुरु का हमारे जीवन में स्वतः ही प्रवेश हो जाता है । यदि कुलदेवता का नाम पता हो, तो कुलदेवता के नाम के आगे ‘श्रीऽ लगाएँ और तत्पश्चात देवता के नाम के साथ चतुर्थी का प्रत्यय लगाएँ और अंत में “नमः” लगाएँ । इस प्रकार कुलदेवता का जप करें, जैसे यदि कुलदेवता ‘गणेशऽ हों, तो ‘श्री गणेशाय नमःऽ और यदि कुलदेवी ‘भवानीऽ हों, तो ‘श्री भवानी देव्यै नमःऽ, इस प्रकार जप करें । यदि कुलदेवता का नाम नहीं पता हो, तो ‘श्री कुलदेवतायै नमःऽ जपें और अपने इष्ट का स्वरूप अपने मन में रखें ।

जिनके लिए जीवन में साधना प्रधान हो और सांसारिक जीवन गौण हो, अर्थात जिनका आध्यात्मिक स्तर 50% से अधिक हो, ऐसे साधक को उच्च कोटि के देवता जैसे राम, कृष्ण, दुर्गा, शिव, हनुमान, दत्त, गणपति में से जो उनके आराध्य हों, उनका जप करना चाहिए ।

वर्तमान काल में 50% साधारण व्यक्तियों को और 70% अच्छे साधकों को अनिष्ट शक्ति का तीव्र कष्ट है । ऐसे में सर्वप्रथम अनिष्ट शक्ति के कष्ट के निवारणार्थ जप करें ।

  • अनिष्ट शक्ति क्या होती है ?

ईश्वर ने सृष्टि की रचना के साथ ही दो शक्तियों देव और असुर का निर्माण किया जिसमें एक है इष्टकारी शक्ति, कल्याणकारी शक्ति और दूसरा अनिष्ट शक्ति अर्थात विनाशकारी शक्ति । जब किसी दुर्जन की मृत्यु हो जाए और उसका क्रिया-कर्म वैदिक रीतिसे न हुआ हो, या उसके कर्मानुसार उसे गति न मिले, तो वे भी अनिष्ट शक्ति के गुट में चले जाते हैं । उसी प्रकार हमारे पूर्वजों ने पाप कर्म किए हों, या उनकी कोई इच्छा अतृप्त रह गई हो और हम अतृप्त पितरों की सद्गति के लिए योग्य साधना नहीं करते हों, तो वे भी अनिष्ट शक्ति के गुट में चले जाते हैं और साधनाके अभावमें बलाढ्य आनिष्ट शक्तियां उन्हें सूक्ष्म जगतमें बंधक बना, उनसे बुरे कर्म करवाती हैं अतः उनसे भी कष्ट होता है ।

वर्तमान समय में धर्माचरण के अभाव में व्यष्टि (वैयक्तिक) एवं समष्टि (सामाजिक) जीवनमें अनिष्ट शक्ति का कष्ट बढ़ गया है और चारों ओर ‘त्राहिमांऽ की स्थिति बन गयी है । अनिष्ट शक्तिके कारण किस प्रकारके कष्ट हो सकते हैं? अवसाद (डिप्रेशन), आत्म-हत्याके विचार आना, अत्यधिक क्रोध आना और उस आवेशमें अपना आपा पूर्ण रूप से खो देना, मनमें सदैव वासना के विचार आना, नींद न आना, अत्यधिक नींद आना, शरीरके किसी भागमें वेदना होना और औषधि द्वारा उस वेदना का ठीक न हो पाना, मनका अत्यधिक अशांत रहना, व्यवसाय में सदैव हानि होना, परीक्षा के समय सदैव कुछ न कुछ अड़चन आना, घरमें सदैव कलह-क्लेश रहना, लगातार गर्भपात होना, बिना कारण आर्थिक हानि होना, रोग का वंशानुगत होना, व्यसनी होना, लगातार अपघात या दुर्घटना होते रहना, नौकरी या जीविकोपार्जन में सदैव अड़चन आना, सामूहिक बलात्कार, समलैंगिकता, भयावह यौन रोग, यह सब अनिष्ट शक्तियों के कारण होते हैं।

यदि किसीको अनिष्ट शक्तिका कष्ट हो तो आरम्भमें एक वर्षके लिए ‘श्रीगुरुदेव दत्तऽ का जप अधिकसे अधिक करना चाहिए और उसके पश्चात ‘सात नामजपका प्रयोगऽ कर, जिस नामजपसे कष्ट हो, उनका अखंड जप करना चाहिए। एक महीनेके पश्चात पुनः प्रयोग कर नए नामजपको ढूंढ कर निकालना चाहिए। ऐसे करनेसे उनके जीवनमें सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियोंद्वारा दिये जानेवाले कष्ट अति शीघ्र कम हो जाते हैं अन्यथा साधनाका व्यय, अनिष्ट शक्तिद्वारा दिए जा रहे कष्टपर मात करने हेतु हो जाता है और आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती ।

‘सप्त देवताका नामजप प्रयोगऽ कैसे कर सकते हैं, यह संक्षेपमें देख लेते हैं । स्नानकर या हाथ मुंह धोकर, स्वच्छ और पवित्र स्थानपर बैठ जाएँ और राम, कृष्ण, दुर्गा, शिव, हनुमान, दत्त, गणपति, इनके क्रमशः ‘श्री राम जय राम जय जय रामऽ, ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवायऽ, ‘ ॐ श्री दुर्गा देव्यै नमःऽ , ‘ॐ नमः शिवायऽ, ‘ॐ हं हनुमते नमःऽ, ‘ॐ श्री गुरुदेव दत्तऽ, ‘ॐ गं गणपतये नमःऽ जपके समय किस जपसे सर्वाधिक कष्ट हो रहा है यह देखें । जिस जपसे सबसे अधिक कष्ट हो रहा हो, वह जप अगले एक महीनेके लिए करना चाहिए ।

यदि जप करते समय तनिक भी कष्ट न हो तो जिस जपमें सबसे कम विचार आयें, वह जप करें । जप करते समय नींद आना, बुरे विचार आना, जप करनेका मन न करना, जी मितलाना, उबासियाँ आना, शरीर में वेदना होना जैसे कष्ट हों तो समझें कि अनिष्ट शक्ति का कष्ट है । इन्हीं सभी सात जप को पांच-पांच मिनट करें और एक जप पांच मिनट करने के पश्चात उस दौरान क्या हुआ, यह एक कॉपी में लिख कर पुनः जप आरम्भ करने से पहले अगले उपास्य देवता को प्रार्थना करें । “हे भगवन, मेरे जीवन में जो भी अनिष्ट शक्ति मेरे व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक जीवन में अड़चनें निर्माण कर रही हैं, उनपर मात पाने हेतु नाम जप का प्रयोग कर रही/रहा हूँ । नामजप के प्रयोग में सहायता करें और इससे पहले जो हमने जप किया, उसका प्रभाव इस जपके समय न हो ऐसी आप कृपा करेंऽऽ। प्रत्येक महीने जप का प्रयोग क्यों करना चाहिए ? एक महीने में या तो वह अनिष्ट शक्ति उस जपका कोई तोड़ ढूंढ लेती है, या उसे मुक्ति मिलने पर, कोई दूसरी अनिष्ट शक्ति हमें कष्ट देने लगती है । अतः जब तक अनिष्ट शक्ति के कष्ट कम न हो जाएँ, तब तक यह सात नाम जप का प्रयोग करते रहना चाहिए ।

इस ब्रह्माण्ड में 33 कोटी देव है नही सिर्फ एक ही देव हैं जो निरंजन निराकार हैं। लोगों को इस बात की बहुत बड़ी गलतफहमी है कि हिन्दू सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं । लेकिन ऐसा है नहीं और, सच्चाई इसके बिलकुल ही विपरीत है । दरअसल हमारे वेदों में उल्लेख है 33 “कोटि” देवी-देवता। अब “कोटि” का अर्थ “प्रकार” भी होता है और “करोड़” भी । तो लोगोँ ने उसे हिंदी में करोड़ पढना शुरू कर दिया जबकि वेदों का तात्पर्य 33 कोटि अर्थात 33 प्रकार के देवी-देवताओं से है (उच्च कोटि.. निम्न कोटि इत्यादि शब्द तो आपने सुना ही होगा जिसका अर्थ भी करोड़ ना होकर प्रकार होता है) ये एक ऐसी भूल है जिसने वेदों में लिखे पूरे अर्थ को ही परिवर्तित कर दिया। इसे आप इस निम्नलिखित उदाहरण से और अच्छी तरह समझ सकते हैं । अगर कोई कहता है कि बच्चों को “कमरे में बंद रखा” गया है । और दूसरा इसी वाक्य की मात्रा को बदल कर बोले कि बच्चों को कमरे में ” बंदर खा गया ” है। (बंद रखा़ बंदर खा) सिर्फ इतना ही नहीं हमारे धार्मिक ग्रंथों में साफ-साफ उल्लेख है कि “निरंजनो निराकारो एको देवो महेश्वरः” अर्थात इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं जो निरंजन निराकार महादेव हैं । साथ ही यहाँ एक बात ध्यान में रखने योग्य बात है कि हिन्दू सनातन धर्म मानव की उत्पत्ति के साथ ही बना है और प्राकृतिक है इसीलिए हमारे धर्म में प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीना बताया गया है और प्रकृति को भी भगवान की उपाधि दी गयी है ताकि लोगप्रकृति के साथ खिलवाड़ ना करें।

जैसे कि :
1 गंगा को देवी माना जाता है क्योंकि गंगाजल में सैकड़ों प्रकार की हिमालय की औषधियां घुली होती हैं । 
2 गाय को माता कहा जाता है क्योंकि गाय का दूध अमृत तुल्य और, उनका गोबर एवं गौ मूत्र में विभिन्न प्रकार की औषधीय गुण पाए जाते हैं । 
3 तुलसी के पौधे को भगवान इसीलिए माना जाता है कि तुलसी के पौधे के हर भाग में विभिन्न औषधीय गुण हैं । 
4 इसी तरह वट और बरगद के वृक्ष घने होने के कारण ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं और, थके हुए राहगीर को छाया भी प्रदान करते हैं। 

यही कारण है कि हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रकृति पूजा को प्राथमिकता दी गयी है क्योंकि, प्रकृति से ही मनुष्य जाति है ना कि मनुष्य जाति से प्रकृति है । अतः प्रकृति को धर्म से जोड़ा जाना और उनकी पूजा करना सर्वथा उपर्युक्त है । यही कारण है कि हमारे धर्म ग्रंथों में सूर्य, चन्द्र, वरुण, वायु, अग्नि को भी देवता माना गया है और इसी प्रकार कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैं । इसीलिए, आप लोग बिलकुल भी भ्रम में ना रहें क्योंकि ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं जो निरंजन निराकार महादेव हैं।
  • अतः कुल 33 प्रकार के देवता हैं : 

12 आदित्य है : धाता, मित्, अर्यमा, शक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा, एवं विष्णु। 8 वसु हैं : धर, ध्रुव,सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष एवं प्रभाष 11 रूद्र हैं : हर, बहुरूप, त्र्यम्बक, अपराजिता, वृषाकपि, शम्भू, कपर्दी, रेवत, म्रग्व्यध, शर्व तथा कपाली। 2 अश्विनी कुमार हैं। कुल : 12 +8 +11 +2=33