मंगलवार, 13 मई 2014

बुद्धं शरणं गच्छामि


  भगवान गौतम बुद्ध का मूल नाम सिद्धार्थ था उन्हें "बुद्ध​" या "महात्मा बुद्ध आदि नामों से भी जाना जाता है ये बौद्ध धर्म के संस्थापक हुए ।बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परंपरा से निकला धर्म और दर्शन है तथा समस्त विश्व के चार बड़े धर्मों में से एक है ।
   सिद्धार्थ बचपन से ही एकान्तप्रिय, मननशील एवं दयावान प्रवृत्ति के थे। जिस कारण आपके पिता बहुत चिन्तित रहते थे। उपाय स्वरूप सिद्धार्थ की 15 वर्ष की आयु में गणराज्य की राजकुमारी यशोधरा से शादी करवा दी गई। विवाह के कुछ वर्ष बाद एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया। समस्त राज्य में पुत्र जन्म की खुशियां मनाई जा रही थी लेकिन सिद्धार्थ ने कहा, आज मेरे बन्धन की श्रृंखला में एक कङी और जुङ गई। यद्यपि उन्हे समस्त सुख प्राप्त थे, किन्तु शान्ति प्राप्त नही थी। चार दृश्यों (वृद्ध, रोगी, मृतव्यक्ति एवं सन्यासी) ने उनके जीवन को वैराग्य के मार्ग की तरफ मोङ दिया। अतः एक रात पुत्र व अपनी पत्नी को सोता हुआ छोङकर गृह त्यागकर ज्ञान की खोज में निकल पङे।
“मेरा प्रथम और अंतिम सन्देश तो यही है कि अप्पो दीपो भव: , स्वंय के दीपक स्वंय ही बनो , खुद की चेतना से खुद को रौशनी से अनुग्रहित करो . जब हम खुद के दीपक बन जायेंगे तो ,सारा सम्यक मार्ग प्रकाशित हो  जायेंगा और वही सच्चा संन्यास का मार्ग होंगा और वही सच्ची दीक्षा होंगी.”

ये कहकर बुद्ध ने सभी को प्रणाम किया और फिर सारा संघ एक स्वर में गा उठा :
बुद्धं शरणं गच्छामि : मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ।
धम्मं शरणं गच्छामि : मैं धर्म की शरण लेता हूँ।
संघं शरणं गच्छामि : मैं संघ की शरण लेता हूँ।

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