शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

प्राचीन भारत वंश​


जम्बूद्वीप के एक प्रमुख देश भारतवर्ष में पहले देव, असुर, गंधर्व, किन्नर, यक्ष, नाग, पिशाच, सिद्ध, चारण, रक्ष आदि जातियां निवास करती थीं। बाद में कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरांतदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर, अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, संधव, हूण, शक, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ, मलेच्छ और पारसी गण रहने लगे। भारत के पूर्वी भाग में किरात (चीनी) और पश्चिमी भाग में यवन (अरबी) बसे हुए थे। 

भारतवर्ष की सीमा : भारत की सीमाएं हिन्दूकुश पर्वत से बर्मा तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक थीं। दूसरी ओर हिन्दूकुश पर्वतमालाओं से लेकर कराची तक का क्षे‍त्र भारतवर्ष कहलाता था। भारत में बहती हैं सिंधु और उसकी सहायक नदियां, विवस्ता, सरस्वती, यमुना, गंगा और उसकी सहायक नदियां, गोदावरी, नर्मदा, शिप्रा, ताप्ती, कृष्णा, कावेरी, ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियां आदि।

भारतीय कुल : मूल रूप से प्राचीन भारत में अयोध्या कुल, यदु कुल, पौरव कुल और कुरुवंश का शासन था लेकिन इनके अलावा दिवोदास (काशी), दुर्दम (हैहय), कैकय (आनव), गाधी (कान्यकुब्ज), अर्जुन (हैहय), विश्वामित्र (कान्यकुब्ज), तालजङ्घ (हैहय), प्रचेतस (द्रुह्यु), सुचेतस (द्रुह्यु), सुदेव (काशी), दिवोदास द्वितीय, बलि (आनव) और किशकिंधा (वानर) आदि का भी राज्य शासन रहा। दूसरी ओर मगध साम्राज्य पर कई राजवंशों का आधिपत्य रहा।

भारत में जनपद : अंग, अवंति, अश्मक, कंबोज, काशी, कुरु, कोशल, गांधार, चेदि, पंचाल, मगध, मत्स्य, मल्ल, वज्जि, वत्स, शूरसेन, कलिंग, पुंड्र, किरातक, प्रगियोतिशपुर, विजय नगर, किशकिंधा, विदर्भ, मलय, अमरावती आदि। हर काल में ये जनपद बदलते रहे। लेकिन जिस व्यक्ति ने उक्त संपूर्ण जनपदों पर राज किया वही चक्रवर्ती सम्राट कहलाया।

मध्यकाल में भारत की दुर्गति हो गई। अरब, तुर्क और ईरानियों ने भारत को लूटा। अंग्रेज काल में भारत के इतिहास को तोड़-मरोड़कर उसके गौरवशाली पन्ने नष्ट कर दिए गए। आजाद भारत में यहीं काम वामपंथियों और अंग्रेजों के गुलामों ने किया। यहां प्रस्तुत है सबसे प्रारंभिक और सबसे प्राचीनकाल के उन लोगों की लिस्ट जिन्होंने किसी काल में धरती पर राज किया था और जो हिन्दू धर्म के विस्तार के जन्मदाता हैं और जिन्होंने समय-समय पर वेदों की रक्षा की। इनमें से भी मरीचि, अत्रि, अंगिरस, भृगु, प्रचेता, पुलस्य, पुलह, स्वायंभुव मनु के कुल का ही विस्तार अधिक हुआ। ब्रह्मा ने सिर्फ जीवों की रचना ही नहीं ‍‍की बल्कि उन्होंने इस धरती को मानव जाति के रहने लायक भी बनाया। इसके लिए उन्होंने और उनके पुत्रों ने जो कार्य किए उनका वर्णन पुराणों में मिलता है। ऋषि कश्यप के पुत्र विवस्वान से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ।  महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्शु, नाभाग, दिष्ट, करुष और पृषध्र नामक १० श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई और इनके कुल ने भारत पर राज किया। ये अयोध्या कुल के राजा थे। भारत में ब्रह्मा के पुत्रों से सूर्यवंश, चंद्रवंश, नागवंश, अग्निवंश, ऋषिवंश, गंधर्ववंश आदि वंशों की स्थापना हुई। बहुत समय पहले ब्रह्मा ने मनुष्यों में एकता और शांति स्थापित करने के लिए विशालकाय मानवों की रचना भी की थी लेकिन अब उनका अस्तित्व नहीं बचा। यहां प्रस्तुत है उन सम्राटों की लिस्ट जिन्होंने भारत का निर्माण किया या जिन्होंने भारतीय धर्म और संस्कृति की रक्षा की।

प्रजापति : ब्रह्मा कौन थे? क्या वे धरती के इंसान थे या कि वे अंतरिक्ष से उतरे देवता? इसका शोध होना जरूरी है। ब्रह्मा को आदेश मिला था कि वे धरती पर जीवों की रचना करें और उन्होंने ऐसा ही किया। उनके कई पुत्र थे जिनमें से प्रमुख थे- मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलस्य, पुलह, कृतु, भृगु, वशिष्ठ, दक्ष, कर्दम, प्रचेता, नारद, सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार, स्वायंभुव मनु, चित्रगुप्त। (प्रजापतियों के काल में ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव थे)।
ब्रह्मा पुत्रों का राज : ब्रह्मा पुत्रों ने बसाया धरती को। यह सबसे प्राचीनकाल था, जब धरती पर जीवों और प्राणियों की उत्पत्ति हो रही थी तो दूसरी ओर धरती की प्रकृति बदल रही थी। एक द्वीप की यह धरती बहुत बाद में चार द्वीप में बदली, फिर सप्त द्वीप की हो गई। सबसे पहले मरीचि, अत्रि और भृगु में साम्राज्य विस्तार की होड़ चली। मरीचि और दक्ष का भगवान शिव से झगड़ा हो चला था जिसके चलते उन्हें अपने प्राण खोना पड़े।

कश्यप : मरीचि पुत्र ऋषि कश्यप (अरिष्टनेमी) की कई पत्नियां थीं जिससे हजारों पुत्रों का जन्म हुआ। कश्यप ऋषि कश्मीर के पहले राजा थे। कश्मीर को उन्होंने अपने सपनों का राज्य बनाया। कश्मीर में बहुत सारे भरे हुए जल को उन्होंने बाहर निकालकर उस स्थान को रहने और जीने लायक बनाया।
देवता (सुर) : मरीचि के पत्नी अदिति से १२ पुत्र थे- विवस्वान, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। हिमालय और तिब्बत इनका गढ़ था। सभी पुत्रों ने अपने-अपने क्षेत्र को चुना। विवस्वान देवताओं के अधिपति बने, अर्यमा पितरों के, वरुण जल के और इंद्र स्वर्ग के। इसी तरह सभी भिन्न लोक के अधिपति बने। 

दैत्य (असुर) : कश्यप की दूसरी पत्नी के भी कई पुत्र थे जिनमें प्रमुख थे- हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष। इनके कुल में ही राजा बलि, अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद, संहल्लाद, मधु और कैटभ हुए। भारत से मिस्र तक का क्षेत्र इनका राज्य था। इससे पहले ये दानवों के साथ इलावृत में रहते थे।
दानव : कश्यप की तीसरी पत्नी दनु से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरुपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि ६१ महान दानव जन्मे।

नाग : कश्यप की चौथी पत्नी कद्रू से- अनंत (शेषनाग), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक जन्मे। कश्मीर इनका गढ़ था। अनंतनाग इनकी राजधानी थी। नाग जाति मानवों की एक जाति का ही नाम है। बाद में उन्होंने मथुरा और अ‍वंतिका पर भी कब्जा कर लिया था। नाग जातियों में कई महान और प्रतापी राजा हुए हैं। पुराणों में कहीं- कहीं सर्पमुखी मानवों का उल्लेख मिलता है। हालांकि ये उस तरह का मुखौटा पहनने के कारण हो सकता है।

 गंधर्व : कश्यप की पत्नी अरिष्टा के भी कई पुत्र थे जिनको गंधर्व कहा जाता था। गंधर्व जाति के लोगों को देवोपम भी कहते थे। गंधर्वों के दूसरे नाम ऽगातुऽ और ऽपुलमऽ भी हैं। देवलोक के पास ही इनका लोक था। ये देवताओं के गायक और औषधियों के जानकार थे। अथर्ववेद में ही उनकी संख्या ६,३३३ बताई गई है। गंधर्वों में भी कई महान प्रतापी राजा हुए और उनके कुल के लोगों ने अवंतिका में भी राज किया था। आज भी नर्तकियों के संबंधी और उनके यह कलाकार अपने को गंधर्व कहते हैं। चित्ररथ (अंगार पर्व) में अनेक गंधर्वों के नाम गिनाए गए हैं।
यक्ष और रक्ष : पुराणों के अनुसार कश्यप की सुरसा नामक रानी से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए, लेकिन एक कथा के अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा ने समुद्रगत जल और प्राणियों की रक्षा के लिए अनेक प्रकार के प्राणियों को उत्पन्न किया। उनमें से कुछ प्राणियों ने रक्षा की जिम्मेदारी संभाली तो वे राक्षस कहलाए और जिन्होंने यक्षण (पूजन) करना स्वीकार किया वे यक्ष कहलाए। राक्षसों का प्रतिनिधित्व दो लोगों को सौंपा गया- ऽहेतिऽ और ऽप्रहेतिऽ। ये दोनों भाई थे। ये दोनों भी दैत्यों के प्रतिनिधि मधु और कैटभ के समान ही बलशाली और पराक्रमी थे। प्रहेति धर्मात्मा था तो हेति को राजपाट और राजनीति में ज्यादा रुचि थी। 

हेति के पुत्र विद्युत्केश हुए। विद्युत्केश के पुत्र सुकेश हुए। सुकेश को लावारिस छोड़ दिया गया, तब उसे भगवान शंकर और पार्वती ने पाला। बस यहीं से राक्षस जाति का भाग्य बदल गया। सुकेश ने गंधर्व कन्या देववती से विवाह किया। देववती से सुकेश के ३ पुत्र हुए- १. माल्यवान, २. सुमाली और ३. माली। तीनों भाइयों ने मिलकर विश्वकर्मा से त्रिकुट पर्वत के निकट समुद्र तट पर लंका का निर्माण कराया और उसे अपने शासन का केंद्र बनाया। तीनों भाइयों के वंशज में माल्यवान के वज्र, मुष्टि, धिरुपार्श्व, दुर्मख, सप्तवहन, यज्ञकोप, मत्त, उन्मत्त नामक पुत्र और अनला नामक कन्या हुई।

सुमाली के प्रहस्त, अकन्पन, विकट, कालिकामुख, धूम्राश, दंड, सुपार्श्व, सहादि, प्रधस, भास्कण नामक पुत्र तथा रांका, पुण्डपोत्कटा, कैकसी, कुभीनशी नामक पुत्रियां हुईं। इनमें से कैकसी रावण की मां थी। माली रावण के नाना थे। माली के अनल, अनिल, हर और संपात्ति नामक ४ पुत्र हुए। ये चारों पुत्र रावण की मृत्यु पश्चात विभीषण के मंत्री बने थे। 
रावण राक्षस जाति का नहीं था, उसकी माता राक्षस जाति की थी लेकिन उनके पिता यक्ष जाति के ब्राह्मण थे। जब माल्यवान, सुमाली और माली आदि राक्षसों को लंका से खदेड़ दिया गया, तब लंका को प्रजापति ब्रह्मा ने धनपति कुबेर को सौंप दिया। रावण को राक्षसों का अधिपति बनाया गया, तब रावण ने राक्षस जाति के खोए हुए सम्मान को पुन: प्राप्त करने का वचन लिया और अपना विश्व विजय अभियान शुरू किया।

किन्नर : किन्नर हिमालय के क्षेत्रों में बसने वाली एक मनुष्य जाति का नाम था। आजकल ऽकिन्नरऽ शब्द का अर्थ बदल गया है। किन्नरों की उत्पति के बारे में दो मत हैं- एक तो यह कि वे ब्रह्मा की छाया अथवा उनके पैर के अंगूठे से उत्पन्न हुए और दूसरा यह कि कश्यप-अरिष्टा के कुल से थे। हिमालय का पवित्र शिखर कैलाश किन्नरों का प्रधान निवास स्थान था, जहां वे भगवान शंकर की सेवा किया करते थे। यक्षों और गंधर्वों की तरह वे नृत्य और गान में प्रवीण होते थे। उनके सैकड़ों गण थे और चित्ररथ उनका प्रधान अधिपति था।

शतपथ ब्राह्मण (७.५.२.३२) में अश्वमुखी मानव शरीर वाले किन्नर का उल्लेख है। बौद्ध साहित्य में किन्नर की कल्पना मानवमुखी पक्षी के रूप में की गई है। मानसार में किन्नर के गरूड़मुखी, मानव शरीरी और पशुपदी रूप का वर्णन है। हालांकि यह उस तरह का मुखौटा पहनने के कारण हो सकता है।

किन्नर हिमालय क्षेत्र में बसने वाली अति-प्रतिष्ठित व महत्वपूर्ण आदिम जाति है जिसके वंशज वर्तमान जनजातीय जिला किन्नौर के निवासी माने जाते हैं। हिमालय में आधुनिक कन्नौर प्रदेश के पहाड़ी लोग, जिनकी भाषा कन्नौरी, गलचा, लाहौली आदि बोलियों के परिवार की है आज भी यह जाति निवास करती है। पहले किन्नौर या किन्नर क्षेत्र बहुत विस्तृत था। कश्मीर से पूर्व नेपाल तक प्रायः सारा ही पश्चिमी हिमालय तो निश्चित ही किन्नर जाति का निवास था। चन्द्रभागा (चनाव) नदी के तट पर आज भी किन्नौरी भाषा बोली जाती है।

इंद्र, वरुण और कुबेर, अश्विनी कुमार आदि सभी हिमालय के उस पार उत्तर के क्षेत्र में रहते थे। अदिति के पुत्र इंद्र के नाम पर ही इंद्र पद की परंपरा की शुरुआत हुई। फिर इंद्र एक पद होने लगा। अब तक इस पद पर कई लोग बैठ चुके हैं। रावण के पुत्र मेघनाद ने भी देवलोक पर विजय प्राप्त कर इंद्र पद हथिया लिया था। मनु के काल में अलग इंद्र थे तो कृष्ण के काल में अलग। महाभारत युद्ध के बाद जातियों के संक्रमण और भिन्न-भिन्न संस्कृतियों और धर्मों के जन्म के बाद देवलोक में नए समाज और धर्म की स्थापना हुई और इंद्र प्रथा का राज्य समाप्त हो गया।

माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्मीर का प्राचीन नाम था। समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजाओं का साम्राज्य भी था। इस काल में तिब्बत (त्रिविष्टप) को देवलोक माना जाता था जिसके उत्तर में गंधर्व लोक, गंधर्व के उत्तर में दानव लोक था। तिब्बत के दक्षिण में मानव और उसके भी दक्षिण में पाताल लोक था।

प्रारंभिक राजाओं की लिस्ट हमने पहले भाग में बताई : मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलस्य, पुलह, कृतु, भृगु, वशिष्ठ, दक्ष, कर्दम, प्रचेता, नारद, सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार, स्वायंभुव मनु, चित्रगुप्त।कश्यप, विवस्वान, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।  

द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरुपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि ६१ महान दानव जन्मे।

अनंत (शेषनाग), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक नाग। गंधर्व, यक्ष और रक्ष : यातुधान, हेति, प्रहेति, विद्युत्केश, सुकेश, माल्यवान, सुमाली, माली। वज्र, मुष्टि, धिरुपार्श्व, दुर्मख, सप्तवहन, यज्ञकोप, मत्त, उन्मत्त। प्रहस्त, अकन्पन, विकट, कालिकामुख, धूम्राश, दण्ड, सुपार्श्व, सहादि, प्रधस, भास्कण। अनल, अनिल, हर और संपात्ति।

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