गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

कर्म का फल प्रत्यक्ष​

बचपन में मैने सुना था तब से जब कभी भी कहीं चींटियों को रात- दिन काम करते देखा करता हूँ, अफसोश की चींटि नहीं मैं ही उन्हें देख थक जाता हूँ । सचमुच अपने भार से भी कहीं गुना बोझ लिए चींटियाँ पर्वतों से भी विकट चढाई को चढ जातीं हैं । इसमें तनिक भी संदेह नहीं की वो दीवार की चढाईयों चढते वक्त कितनी बार गिर जाया करती हैं पर उनका विश्वास और उनकी ज़िद चीटियों तक ही नहीं हम मनाव समाज तक चर्चित  है। अथक परिश्रम का प्रतीक बन चुकी चींटियाँ मानव समाज को एक शिक्षा ही दे रहीं हैं, परन्तु आज भी लोग मुफ़्त का खाना ज्यादा पसंद करते हैं । 

समाज में दो वर्ग के लोग हैं, एक जो आपको अच्छा मानते हैं और दूसरे वो जो आपको अच्छा बनने नहीं देना चाहते, जिस तरह वे गिरे हुए हैं उसी जगह पर आपको भी देखना चाहते हैं । परन्तु हम किसके पक्ष में हैं यह तो स्वयं हम ही जानते हैं । फिर हम जानते हुए भी अच्छा नहीं बन पाते और न ही प्रयास कर पाते हैं, इसका मात्र एक ही कारण है और वह आत्मविश्वास की कमी, चींटियों का आत्मविश्वास देखो ।  वह जानती है कि वह जो कार्य कर रही है उसमें कठिनाई है पर असम्भव नहीं और वह अपने कर्म से अपने ज़िद को पूरा कर जाती है।

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