गुरुवार, 24 मई 2018

शूर्पणखा और रावण

शूर्पणखा भी चाहती थी रावण का सर्वनाश, जानिए रामायण से जुड़ी ऐसी ही कुछ रोचक बातें:

सनातन धर्म में रामायण का महत्व सर्वविदित है.. ये सिर्फ एक पौराणिक कथा नही बल्कि जीवन का सार है। मूल कथा के साथ इसमे वर्णित हर प्रसंग बेहद अनमोल है जबकि हममें से अधिकांश लोग उनके बारे में नही जानते हैं। दरअसल श्रीराम का वनवास, सीता का हरण और रावण वध जैसे प्रमुख घटनाए तो हर कोई जानता है पर कई सारे ऐसे प्रसंग भी जिनसे लोग अनभिज्ञ हैं और आज हम आपको ऐसी ही अनसुनी और रोचक बातों के बारे में बताने जा रहे हैं।

असल में भगवान राम को समर्पित कई ग्रन्थ लिखे गए है पर उन सब में वाल्मीकि रचित रामायण सबसे प्रामाणिक मानी जाती है और रामायण से जुड़ी कुछ ऐसी बातें हैं जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। हम आपको वाल्मीकि रचित रामायण के कुछ बातों के बारे में बताने जा रहे हैं।

आज तक हम यही सुनते आ रहे हैं कि सीता का भव्य स्वयंवर आयोजित हुआ था जिसको श्रीराम ने जीता था पर आपको बता दें कि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का कोई वर्णन नहीं है। जी हां, वाल्मीकि कृत रामायण के अनुसार अपने गुरू ऋषि विश्वामित्र के साथ भगवान राम व लक्ष्मण मिथिला पहुंचे थे और वहां विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा और तब श्रीराम ने जैसे ही उस धनुष देखने के लिए उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाया तो वह टूट गया। चूंकि राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी उस शिव धनुष को उठा कर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उससे ही वे अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे. ऐसे में जनक ने सीता का विवाह श्रीराम के साथ कर दिया।

रावण को मिले उस श्राप के विषय में तो आपने सुना होगा जिसकी वजह से उसे किसी पराई स्त्री को उसकी इच्छा के बिना स्पर्श करने पर सर्वनाश होने की चेतावनी मिली थी । उस प्रसंग के बारे में तरह-तरह की मान्यताएं प्रचलित है लेकिन वाल्मीकि के रामायण में उसके बारे में ये लिखा गया है कि जब विश्व विजय करने की मंशा लिए रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो वहां उसे अप्सरा रंभा दिखाई पड़ा और उसकी नियत खराब हो गई। उसने अपनी वासना पूरी करने के लिए रम्भा को पकड़ लिया। तब रम्भा ने बताया कि आप मेरे साथ ऐसा अनाचार ना करें क्योंकि इस समय मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर की सेवा में हूं और इस तरह मैं आपके लिए पुत्रवधू के समान हूं, लेकिन रम्भा के ये कहने पर भी रावण नहीं माना और रंभा से दुराचार किया। ऐसे में जब ये बात नलकुबेर को पता चली तो उसने उसी क्षण रावण को श्राप दे दिया कि आगे से अगर रावण ने किसी पराई स्त्री को बिना उसकी इच्छा के उसे स्पर्श किया तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में खंडित हो जाएगा।

शूर्पणखा के बारे में तो आप जानते ही हैं जिसके लिए रावण ने श्रीराम से बैर पाल लिया था पर क्या आपको पता है कि शूर्पणखा स्वयं भी रावण का विनाश ही चाहती थी। दरअसल रावण की बहन शूर्पणखा का पति था  विद्युतजिव्ह, जो कि कालकेय नाम के राजा का सेनापति था और जब रावण जब विश्व विजय के लिए निकला तो उसका युद्ध कालकेय से भी हुआ था. उसी युद्ध में रावण ने शूर्पणखा के पति विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। इससे क्रोधित होकर शूर्पणखा ने उसी समय मन ही मन रावण को श्राप दे दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।

कैकयी को दिए वचन के कारण राजा दशरथ को श्रीराम को ना चाह कर भी वनवास जाने का आदेश देना पड़ा था। पर वो किसी भी स्थिति में राम को खुद से दूर और वनवास नही जाने देना चाहते थे पर चूंकि वो वचनबद्ध थे। इसलिए जब राम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से आग्रह किया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।

ये तो आप जानते ही है रावण ने कैसे तीनो लोक पर विजय पाने के लिए देवताओं से युद्ध किया था लेकिन क्या आपको ये पता है कि उसने यमराज से भी युद्ध किया था। जी हां, वाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा और वहां उसने यमराज को युद्ध की चुनौती दी और तब यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जिसमें यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा था पर ब्रह्मा जी ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया था क्योंकि रावण का वध किसी देवता के हाथों संभव नहीं था।

इस प्रसंग के बारे में शायद ही आप जानते होंगे कि जब रावण ने सीता का हरण कर उन्हे अपनी अशोक वाटिका में बंदी बला डाला तो उसी रात को ब्रह्मा जी के कहने पर देवराज इंद्र ने माता सीता को सम्बल देने के लिए खीर खिलाई थी। वाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार देवराज ने पहले अशोक वाटिका में मौजूद सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया और उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता मां की शांतचित हो गई।

सोमवार, 21 मई 2018

अशोक

पेड़-पौधों के अलग-अलग उपायों से भी घर-परिवार की धन संबंधी और अन्य परेशानियों को दूर किया जा सकता है। यहां जानिए एक ऐसे वृक्ष
के चमत्कारी उपाय, जो हमारे घर के आसपास
आसानी से मिल जाता है।

इस पेड़ के पत्तों को घर के दरवाजे पर लगाया जाता है। एक बार दरवाजे पर ये पत्ते लगा दिए
जाए तो छ: माह तक वे चमत्कारी असर दिखाते हैं। वंदनवार के रूप में लगाएं पत्तों को
ये चमत्कारी वृक्ष है अशोक।

अशोक के पत्ते घर के दरवाजे पर वंदनवार के रूप में लगाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस घर के मुख्य द्वार पर अशोक के पत्तों की वंदनवार
लगी होती है।

वहां किसी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं होता है। घर का वातावरण पवित्र और सकारात्मक बना रहता है। इन पत्तों का उपयोग
सभी प्रकार के मांगलिक और धार्मिक कार्यों में मुख्य रूप से किया जाता है।

सदाबहार है अशोक

अशोक का वृक्ष सदाबहार है, हर मौसम में यह हरा-भरा रहता है। अशोक के पत्तों का उपयोग घर
की सजावट में और अन्य पूजन संबंधी कार्यों में किया जाता है। किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य अशोक के पत्तों की वंदनवार के बिना अधूरे
ही रहते हैं। इन पत्तों के कारण घर का वातावरण
भी धार्मिक और पवित्र दिखाई देता है।

रविवार, 20 मई 2018

जड़ है कमाल की औषधि

धतूरे की जड़ : अश्लेषा नक्षत्र में धतूरे की जड़ लाकर घर में रखें, घर में सर्प नहीं आएगा और आएगा भी तो कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

बेहड़े का पत्ता : पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में बेहड़े का पत्ता लाकर घर में रखें, घर ऊपरी हवाओं के प्रभाव से मुक्त रहेगा।

नीबू की जड़ : उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नीबू की जड़ लाकर उसे गाय के दूध में मिलाकर निःसंतान स्त्री को पिलाएं, उसे  की प्राप्ति होगी।

चंपा की जड़ : हस्त नक्षत्र में चंपा की जड़ लाकर बच्चे के गले में बांधें, बच्चे की प्रेत बाधा तथा नजर दोष से रक्षा होगी।

चमेली की जड़ : अनुराधा नक्षत्र में चमेली की जड़ गले में बांधें, शत्रु भी मित्र हो जाएंगे।

काले एरंड की जड़ : श्रवण नक्षत्र में एरंड की जड़ लाकर निःसंतान स्त्री के गले में बांधें, उसे संतान की प्राप्ति होगी।

तुलसी की जड़ : पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में तुलसी की जड़ लाकर मस्तिष्क पर रखें, अग्निभय से मुक्ति मिलेगी।

विल्व पत्र : अश्विनी नक्षत्र वाले दिन एक रंग वाली गाय के दूध में बेल के पत्ते डालकर वह दूघ निःसंतान स्त्री को पिलाने से उसे संतान की प्राप्ति होती है।

अपामार्ग की जड़ : अश्विनी नक्षत्र में अपामार्ग की जड़ लाकर इसे तावीज में रखकर किसी सभा में जाएं, सभा के लोग वशीभूत होंगे।

नागर बेल का पत्ता : यदि घर में किसी वस्तु की चोरी हो गई हो, तो भरणी नक्षत्र में नागर बेल का पत्ता लाकर उस पर कत्था लगाकर व सुपारी डालकर चोरी वाले स्थान पर रखें, चोरी की गई वस्तु का पला चला जाएगा।

संखाहुली की जड़ : भरणी नक्षत्र में संखाहुली की जड़ लाकर तावीज में पहनें तो विपरीत लिंग वाले प्राणी आपसे प्रभावित होंगे।

आक की जड़ : कोर्ट कचहरी के मामलों में विजय हेतु आर्द्रा नक्षत्र में आक की जड़ लाकर तावीज की तरह गले में बांधें।

दूधी की जड़ : सुख की प्राप्ति के लिए पुनर्वसु नक्षत्र में दूधी की जड़ लाकर शरीर में लगाएं।

शंख पुष्पी : पुष्य नक्षत्र में शंखपुष्पी लाकर चांदी की डिविया में रखकर तिजोरी में रखें, धन की वृद्धि होगी।

बरगद का पत्ता : अश्लेषा नक्षत्र में बरगद का पत्ता लाकर अन्न भंडार में रखें, भंडार भरा रहेगा।

शनिवार, 12 मई 2018

श्री राम जी की बहन शांता

श्रीराम की दो बहनें भी थी एक शांता और दूसरी कुकबी। हम यहां आपको शांता के बारे में बताएंगे।
अयोध्या के राजा चक्रवर्ती दशरथ और कौशल्या की पुत्री शांता थीं, लेकिन पैदा होने के कुछ वर्षों बाद कुछ कारणों से राजा दशरथ ने शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को दे दिया था।

भगवान राम की बड़ी बहन का पालन-पोषण राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी ने किया, जो महारानी कौशल्या की बहन अर्थात राम की मौसी थीं।


इस संबंध में तीन कथाएं हैं:
पहली :वर्षिणी नि:संतान थीं तथा एक बार अयोध्या में उन्होंने हंसी-हंसी में ही बच्चे की मांग की। दशरथ भी मान गए। रघुकुल का दिया गया वचन निभाने के लिए शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं। शांता वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत थीं और वे अत्यधिक सुंदर भी थीं।

दूसरी :लोककथा अनुसार शांता जब पैदा हुई, तब अयोध्‍या में अकाल पड़ा और 12 वर्षों तक धरती धूल-धूल हो गई। चिंतित राजा को सलाह दी गई कि उनकी पुत्री शां‍ता ही अकाल का कारण है। राजा दशरथ ने अकाल दूर करने के लिए अपनी पुत्री शांता को वर्षिणी को दान कर दिया। उसके बाद शां‍ता कभी अयोध्‍या नहीं आई। कहते हैं कि दशरथ उसे अयोध्या बुलाने से डरते थे इसलिए कि कहीं फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।

तीसरी कथा :कुछ लोग मानते थे कि राजा दशरथ ने शां‍ता को सिर्फ इसलिए गोद दे दिया था, क्‍योंकि वह लड़की होने की वजह से उनकी उत्‍तराधिकारी नहीं बन सकती थीं।

शान्ता का विवाह किससे हुआ, जानिए अगले पन्ने पर...

शांता का विवाह महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋंग ऋषि से हुआ। एक दिन जब विभाण्डक नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था जिसके फलस्वरूप ऋंग ऋषि का जन्म हुआ था।

एक बार एक ब्राह्मण अपने क्षेत्र में फसल की पैदावार के लिए मदद करने के लिए राजा रोमपद के पास गया, तो राजा ने उसकी बात पर ध्‍यान नहीं दिया। अपने भक्‍त की बेइज्‍जती पर गुस्‍साए इंद्रदेव ने बारिश नहीं होने दी, जिस वजह से सूखा पड़ गया। तब राजा ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करने के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद भारी वर्षा हुई। जनता इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्‍न का माहौल बन गया। तभी वर्षिणी और रोमपद ने अपनी गोद ली हुई बेटी शां‍ता का हाथ ऋंग ऋषि को देने का फैसला किया।

दशरथ ने पुत्र की कामना से जब बुलाया अपने दामाद को...

राजा दशरथ और इनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। इनकी चिंता दूर करने के लिए ऋषि वशिष्ठ सलाह देते हैं कि आप अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। इससे पुत्र की प्राप्ति होगी।

दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया। इस यज्ञ में दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलाया। ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे वहां यश होता था। सुमंत ने ऋंग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दिया।

पहले तो ऋंग ऋषि ने यज्ञ करने से इंकार किया लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही ऋंग ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए थे। 

शांता के आने से हुई अयोध्या में वर्षा, अगले पन्ने पर

दशरथ ने केवल ऋंग ऋषि (उनके दामाद) को ही आमंत्रित किया लेकिन ऋंग ऋषि ने कहा कि मैं अकेला नहीं आ सकता। मेरी पत्नी शांता को भी आना पड़ेगा। ऋंग ऋषि की यह बात जानकर राजा दशरथ विचार में पड़ गए, क्योंकि उनके मन में अभी तक दहशत थी कि कहीं शांता के अयोध्या में आने से फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।

लेकिन जब पुत्र की कामना से पुत्र कामेष्ठि यज्ञ के दौरान उन्‍होंने अपने दामाद ऋंग ऋषि को बुलाया, तो दामाद ने शां‍ता के बिना आने से इंकार कर दिया।

तब पुत्र कामना में आतुर दशरथ ने संदेश भिजवाया कि शांता भी आ जाए। शांता तथा ऋंग ऋषि अयोध्या पहुंचे। शांता के पहुंचते ही अयोध्या में वर्षा होने लगी और फूल बरसने लगे। शांता ने दशरथ के चरण स्पर्श किए। दशरथ ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि 'हे देवी, आप कौन हैं? आपके पांव रखते ही चारों ओर वसंत छा गया है।' जब माता-पिता (दशरथ और कौशल्या) विस्मित थे कि वो कौन है? तब शांता ने बताया कि 'वो उनकी पुत्री शांता है।' दशरथ और कौशल्या यह जानकर अधिक प्रसन्न हुए। वर्षों बाद दोनों ने अपनी बेटी को देखा था।

दशरथ ने दोनों को ससम्मान आसन दिया और उन दोनों की पूजा-आरती की। तब ऋंग ऋषि ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ किया तथा इसी से भगवान राम तथा शांता के अन्य भाइयों का जन्म हुआ।

यज्ञ कराने से ऋंग ऋषि का पुण्य नष्ट हो गया तब उन्होंने क्या किया...

कहते हैं कि पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने वाले का जीवनभर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता है। इस पुण्य के बदले ही राजा दशरथ को पुत्रों की प्राप्ति हुई। राजा दशरथ ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के बदले बहुत-सा धन दिया जिससे ऋंग ऋषि के पुत्र और कन्या का भरण-पोषण हुआ और यज्ञ से प्राप्त खीर से राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। ऋंग ऋषि फिर से पुण्य अर्जित करने के लिए वन में जाकर तपस्या करने लगे।

रामायण और रामचरित मानस में शांता के चित्र क्यों नहीं...

जनता के समक्षशान्ताने कभी भी किसी को नहीं पता चलने दिया कि वो राजा दशरथ और कौशल्‍या की पुत्री हैं। यही कारण है कि रामायण या रामचरित मानस में उनका खास उल्लेख नहीं मिलता है।

दुख तो तब हुआ शान्ता को जब कोई भाई मिलने नहीं आया...

कहते हैं कि जीवनभर शांता राह देखती रही अपने भाइयों की कि वे कभी तो उससे मिलने आएंगे, पर कोई नहीं गया उसका हाल-चाल जानने। मर्यादा पुरुषोत्तम भी नहीं, शायद वे भी रामराज्‍य में अकाल पड़ने से डरते थे।

कहते हैं कि वन जाते समय भगवान राम अपनी बहन के आश्रम के पास से भी गुजरे थे। तनिक रुक जाते और बहन को दर्शन ही दे देते। बिन बुलाए आने को राजी नहीं थी शांता। सती माता की कथा सुन चुकी थी बचपन में, दशरथ से।

अगले पन्ने पर कौन से राजपूत हैं ऋंग ऋषि के वंशज...

ऐसा माना जाता है कि ऋंग ऋषि और शांता का वंश ही आगे चलकर सेंगर राजपूत बना। 

विभीषण की माता कौशिल्या

विभीषण की माता कौसल्या और पिता दशरथ?
पहली कथा सुनने में मिलती है”:―
कि कैकसी राक्षसी और ऋषि विश्वश्रवा से उत्पन्न हुए रावण एवं कुंभकर्ण, ये दोनों पुत्र दुष्टकर्मा राक्षस थे। किंतु इन्हीं ऋषि के आशीर्वाद के कारण, कैकसी का तृतीय पुत्र विभीषण, अपने पिता के समान ब्राह्मण वंशीय एवं धर्मात्मा उत्पन्न हुए।

“अब दूसरी कथा को समझते हैं”:―
यह कथा भारत में नहीं अपितु श्रीलंका में विख्यात है। कहते हैं जब रावण को इस बात की जानकारी हुई की कौशिल्या का पुत्र उसकी और उसके परिवार की मृत्यु का कारण बनेगा, तब उसने अपने सैनिकों से कहकर कौशल प्रदेश के राजा कौशिक की पुत्री कौशिल्या जी को विवाह मंडप से अपहरण करवा कर उन्हें लंका के सिंहल द्वीप में सुरक्षित अपने निगरानी में रखता है।

एक बार दशरथ जी सिंहल द्वीप पहुंचे। वहां दशरथ जी का मिलन कौशल्या से हुआ। जिस कारण कौशिल्या जी गर्भवती हो जाती हैं। इधर दशरथ जी कौशिल्या जी से विवाह का प्रस्ताव रखते हैं। तब कौशिल्या जी कहती हैं इस समय मैं लंका के राजा रावण के संरक्षण में हूं। यदि वह आदेश देता है तो अवश्य आपसे विवाह करूंगी। यह सुनकर दशरथ जी अयोध्या वापस आ जाते हैं। समय बीतने पर जब कौशिल्या जी को पुत्र होता है तब कौशिल्या जी ने यह खबर दशरथ जी तक भिजवाया। यह सुन दशरथ जी सुमन्त जी को साथ लेकर तुरत चल पड़े, जब दशरथ जी कौशिल्या जी से मिलते हैं, तब कौशिल्या जी ने अपने पर बीती सारी बात बताई।

तब दशरथ जी ने विवाह करने का फ़ैसला लिया और इस प्रकार ब्राह्मण होने के कारण सुमन्त जी ने स्वयं दोनों का विवाह संस्कार सम्पन्न कराया। विवाह से पहले उत्पन्न संतान को समाज धर्म के कारण त्याग कर दिया, और अयोध्या वापस लौट आए।

विश्वश्रवा की पत्नी मालिनी एक गगन चरी थी। वह आकाश मार्ग से उड़ रही थी, तभी उसने उस बच्चे को देखा। भूख से व्याकुल होने के कारण बालक को निगल गई। विश्वश्रवा ने ध्यान लगाकर देखा तो इस बालक को योग बल के द्वारा अपने दूसरी पत्नी मालिनी के गर्भ में स्थापित किया और इस प्रकार विभीषण जी का जन्म हुआ। विश्वश्रवा ने अपनी पत्नी मालिनी को बताया है कि वह बालक राक्षस वंश का कुल दीपक होगा इसलिए इस बालक का जीवित रहना जरूरी है। आगे चलकर वह परमात्मा राम का भक्त होगा।

कथा का प्रसंग सटीक नहीं इस कथा में कई प्रश्न खड़े हो सकते हैं । जैसे कि भगवान श्री राम के पिता राजा चक्रवर्ती दशरथ कभी नन्हें शिशु को निर्जन द्वीप में त्याग कर जा ही नहीं सकते आदि आदि। इसलिए मेरी दृष्टि में यह कथा कपोल कल्पित है।

भविष्य में 14 रामायण रचे हुए हैं। कंबन रामायण से लेकर तुलसी कृत रामायण और  अध्यात्म रामायण में  प्राचीन कथाएं दी गई हैं। शास्त्र परंपरा के अनुसार विभीषण मालिनी का पुत्र हुआ, यह कथा स्वामी करपात्री जी की कथा में सुनी है।