शनिवार, 9 अगस्त 2014

गृह प्रवेश

नूतन गृह प्रवेश के लिये वास्तु पूजा का विधान
घर के मध्यभाग में तन्दुल यानी चावल पर पूर्व से पश्चिम की तरफ़ एक एक हाथ लम्बी दस रेखायें खींचे,फ़िर उत्तर से दक्षिण की भी उतनी ही लम्बी चौडी रेखायें खींचे,इस प्रकार उसमे बराबर के ८१ पद बन जायेंगे,उनके अन्दर आगे बताये जाने वाले ४५ देवताओं का यथोक्त स्थान में नामोल्लेख करें,बत्तीस देवता बाहर वाली प्राचीर और तेरह देवता भीतर पूजनीय होते हैं। उनके लिये सारणी को इस प्रकार से बना लेवें:

शिखी पर्जन्य जयन्त इन्द्र सूर्य सत्य भृश आकाश वायु
दिति आप जयन्त इन्द्र सूर्य सत्य भृश सावित्र पूषा
अदिति अदिति आपवत्स अर्यमा अर्यमा अर्यमा सविता वितथ वितथ
सर्प सर्प पृथ्वीधर विवस्वान गृहक्षत गृहक्षत
सोम सोम पृथ्वीधर ब्रह्मा विवस्वान यम यम
भल्लाटक भल्लाटक पृथ्वीधर विवस्वान गन्धर्व गन्धर्व
मुख्य मुख्य राज्यक्षमा मित्र मित्र मित्र विवुधिप भृंग भृंग
अहि रुद्र शेष असुर वरुण पुष्पदन्त सुग्रीव जय मृग
रोग राज्यक्षमा शेष असुर वरुण पुष्पदन्त सुग्रीव दौवारिक पितर

इस प्रकार से ४५ देवताओं को स्थापित कर लेना चाहिये,और यही ४५ देवता पूजनीय होते है,आप,आपवर्स पर्जन्य अग्नि और दिति यह पांच देवता एक पद होते है,और यह ईशान में पूजनीय होते है,उसी प्रकार से अन्य कोणों में भी पांच पांच देवता भी एक पद के भागी है,अन्य झो बाह्य पंक्ति के बीस देवता है,वे सब द्विपद के भागी है,तथा ब्रह्मा सी पूर्व दक्षिण पश्चिम और उत्तर दिशामें जो अर्यमा विवस्वान मित्र और पृथ्वीधर ये चार देवता है,वे त्रिपद के भागी है,अत: वास्तु की जानकारी रखने वाले लोग ब्रह्माजी सहित इन एक पद,द्विपद और त्रिपद देवताओं का वास्तु मन्त्रों से दूर्वा,दही,अक्षत,फ़ूल,चन्दन धूप दीप और नैवैद्य आदि से विधिवत पूजन करें,अथवा ब्राह्ममंत्र से आवहनादि षोडस या पन्च उपचारों द्वारा उन्हे दो सफ़ेद वस्त्र समर्पित करें,नैवैद्य में तीन प्रकार के भक्ष्य,भोज्य,और लेह्य अन्न मांगलिक गीत और वाद्य के साथ अर्पण करे,अन्त में ताम्बूल अर्पण करके वास्तु पुरुष की इस प्रकार से प्रार्थना करे- "वास्तुपुरुष नमस्तेऽस्तु भूशय्या निरत प्रभो,मदगृहं धनधान्यादिसमृद्धं कुरु सर्वदा", भूमि शय्या पर शयन करने वाले वास्तुपुरुष ! आपको मेरा नमस्कार है। प्रभो ! आप मेरे घरको धन धान्य आदि से सम्पन्न कीजिये।
इस प्रकार प्रार्थना करके देवताओं के समक्ष पूजा कराने वाले पुरोहित को यथाशक्ति दक्षिणा दे तथा अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हे भी दक्षिणा दे,जो मनुष्य सावधान होकर गृहारम्भ में या गृहप्रवेश के समय इस विधि से वास्तुपूजा करता है,वह आरोग्य पुत्र धन और धान्य प्राप्त करके सुखी होता है,जो मनुष्य वास्तु पूजा न करके नये घर में प्रवेश करता है,वह नाना प्रकार के रोगों,क्लेश,और संकटों से जूझता रहता है।
जिन मकानों में किवाड नही लगाये गये हो,जिनके ऊपर छाया नही की गयी हो,जिस मकान के अन्दर अपनी परम्परा के अनुसार पूजा और वास्तुकर्म नही किये गये हो,उस घर में प्रवेश करने का अर्थ नरक मे प्रवेश करना होता है॥

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

Kundali

शरीर, परिश्रम, धन आदि तभी सार्थक होंगे जब कार्य करने की भावना होगी, रूचि होगी अन्यथा सब व्यर्थ है। अत: कामनाओं, भावनाओं को चतुर्थ भाव रखा गया है। चतुर्थ भाव का संबंध मन-भावनाओं के विकास से है। मनुष्य के पास शरीर, धन, परिश्रम, शक्ति, इच्छा सभी हों, किंतु कार्य करने की तकनीकी जानकारी का अभाव हो अर्थात वैचारिक शक्ति का अभाव हो अथवा कर्म विधि का ज्ञान न हो तो जीवन में उन्नति मिलना मुश्किल है। पंचम भाव का संबंध मनुष्यकी वैचारिक शक्ति के विकास से है यदि मनुष्य अड़चनों, विरोधी शक्तियों, मुश्किलों आदि से लड़ न पाए तो जीवन निखरता नहीं है। अत: षष्ठ भाव शत्रु, विरोध, कठिनाइयों आदि से संबंधित है। मनुष्य में यदि दूसरों से मिलकर चलने की शक्ति न हो और वीर्य शक्ति न हो तो वह जीवन में असफल समझा जाएगा। अत: मिलकर चलने की आदत व वीर्यशक्ति आवश्यक है और उसके लिए भागीदार, जीवनसाथी की आवश्यकता होती ही है। 

अत: वीर्य जीवनसाथी, भागीदार आदि का विचार सप्तम भाव से किया जाता है। यदि मनुष्य अपने साथ आयु लेकर न आए तो उसका रंग-रूप, स्वास्थ्य, गुण, व्यापार आदि कोशिशें सब बेकार अर्थात व्यर्थ हो जाएंगी। अत: अष्टम भाव को आयु भाव माना गया है। आयु का विचार अष्टम से करना चाहिए। नवम स्थान को धर्म व भाग्य स्थान माना है। धर्म-कर्म अच्छे होने पर मनुष्य के भाग्य में उन्नति होती है और इसीलिए धर्म और भाग्य का स्थान नवम माना गया है। दसवें स्थान अथवा भाव को कर्म का स्थान दिया गया है। अत: जैसा कर्म हमने अपने पूर्व में किया होगा उसी के अनुसार हमें फल मिलेगा। एकादश स्थान प्राप्ति स्थान है। हमने जैसे धर्म-कर्म किए होंगे उसी के अनुसार हमें प्राप्ति होगी अर्थात अर्थ लाभ होगा, क्योंकि बिना अर्थ सब व्यर्थ है आज इस अर्थ प्रधान युग में। द्वादश भाव को मोक्ष स्थान माना गया है। अत: संसार में आने और जन्म लेने के उद्देश्य को हमारी जन्मकुंडली क्रम से इसी तथ्य को व्यक्त करती है।

विधि का विधान है कि मनुष्य जन्म पाकर मोक्ष तक पहुंचे अर्थात प्रथम भाव से द्वादश भाव तक पहुंचे। किसी भी मनुष्य के जीवनारंभ से लेकर मृत्यु तक जो भी सांसारिक अथवा जिन अन्य वस्तुओं आदि की आवश्यकता मनुष्य को पड़ती है उसका संबंध प्रथम (पहले) भाव से द्वादश (बारहवें) भाव से होता है। मनुष्य के लिए संसार में सबसे पहली घटना उसका इस पृथ्वी पर जन्म है, इसीलिए प्रथम भाव जन्म भाव कहलाता है। 

जन्म लेने पर जो वस्तुएं मनुष्य को प्राप्त होती हैं उन सब वस्तुओं का विचार अथवा संबंध प्रथम भाव से होता है जैसे- रंग-रूप, कद, जाति, जन्म स्थान तथा जन्म समय की बातें। मनुष्य को शरीर तो प्राप्त हो गया, किंतु शरीर को गतिमान बनाए रखने के लिए खाद्य पदार्थों, धन अथवा कुटुंब की आवश्यकता होती है। इसीलिए खाद्य पदार्थ, धन, कुटुंब आदि का संबंध द्वितीय भाव से है। धन अथवा अन्य आवश्यकता की वस्तुएं बिना श्रम के प्राप्त नहीं हो सकतीं और बिना परिश्रम के धन टिक नहीं सकता। धन-धान्य इत्यादि वस्तुएं आदि रखने के लिए बल आदि की आवश्यकता होती है इसीलिए तृतीय भाव का संबंध, बल, परिश्रम व बाहु से होता है।

क्या चढ़ाने से हो सकती है आपकी शिव पूजा बेकार, जानें

भोलेनाथ को देवों के देव यानी महादेव भी कहा जाता है। कहते हैं कि शिव आदि और अनंत हैं। शिव ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जिनकी लिंग रूप में भी पूजा जाता है। शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अनेक ऐसी चीजें पूजा में अर्पित की जाती हैं जो और किसी देवता को नहीं चढ़ाई जाती। जैसे आंक, बिल्वपत्र, भांग आदि। लेकिन शास्त्रों के अनुसार, कुछ चीज़ें शिव पूजा में कभी उपयोग नहीं करनी चाहिए...
हल्दी
धार्मिक कार्यों में हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है। कई पूजन कार्य हल्दी के बिना पूर्ण नहीं माने जाते। लेकिन हल्दी, शिवजी के अलावा सभी देवी-देवताओं को अर्पित की जाती है। हल्दी का स्त्री सौंदर्य प्रसाधन में मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है, इसी वजह से महादेव को हल्दी इसीलिए नहीं चढ़ाई जाती है। शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए परंतु जलाधारी पर चढ़ाई जानी चाहिए। शिवलिंग दो भागों से मिलकर बनी होती है। एक भाग शिवजी का प्रतीक है और दूसरा हिस्सा माता पार्वती का। शिवलिंग चूंकि पुरुषत्व का प्रतिनिधित्व करता है अत: इस पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है। हल्दी स्त्री सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री है और जलाधारी मां पार्वती से संबंधित है अत: इस पर हल्दी जाती है।
फूल
शिव को कनेर, और कमल के अलावा लाल रंग के फूल प्रिय नहीं हैं। शिव को केतकी और केवड़े के फूल चढ़ाने का निषेध किया गया है। सफेद रंग के फूलों से शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं। कारण शिव कल्याण के देवता हैं। सफेद शुभ्रता का प्रतीक रंग है। जो शुभ्र है, सौम्य है, शाश्वत है वह श्वेत भाव वाला है। यानि सात्विक भाव वाला। पूजा में शिव को आक और धतूरा के फूल अत्यधिक प्रिय हैं। इसका कारण शिव वनस्पतियों के देवता हैं। अन्य देवताओं को जो फूल बिल्कुल नहीं चढ़ाए जाते, वे शिव को प्रिय हैं। उन्हें मौलसिरी चढ़ाने का उल्लेख मिलता है। एक धारना के अनुसार, शिव पूजा में तरह-तरह के फूलों को चढ़ाने से अलग-अलग तरह की इच्छाएं पूरी हो जाती है। जानिए किस कामना के लिए कैसा फूल शिव को चढ़ाएं.. वाहन सुख के लिए चमेली का फूल। दौलतमंद बनने के लिए कमल का फूल, शंखपुष्पी या बिल्वपत्र। विवाह में समस्या दूर करने के लिए बेला के फूल। इससे योग्य वर-वधू मिलते हैं। पुत्र प्राप्ति के लिए धतुरे का लाल फूल वाला धतूरा शिव को चढ़ाएं। यह न मिलने पर सामान्य धतूरा ही चढ़ाएं। मानसिक तनाव दूर करने के लिए शिव को शेफालिका के फूल चढ़ाएं। जूही के फूल को अर्पित करने से अपार अन्न-धन की कमी नहीं होती।
अगस्त्य के फूल से शिव पूजा करने पर पद, सम्मान मिलता है। शिव पूजा में कनेर के फूलों के अर्पण से वस्त्र-आभूषण की इच्छा पूरी होती है। लंबी आयु के लिए दुर्वाओं से शिव पूजन करें। सुख-शांति और मोक्ष के लिए महादेव की सफेद कमल के फूलों से पूजा करें।
अनाज
इसी तरह भगवान शिव की प्रसन्नता से मनोरथ पूरे करने के लिए शिव पूजा में कई तरह के अनाज चढ़ाने का महत्व बताया गया है। इसलिए श्रद्धा और आस्था के साथ इस उपाय को भी करना न चूकें। जानिए किस अन्न के चढ़ावे से कैसी कामना पूरी होती है...शिव पूजा में गेहूं से बने व्यंजन चढ़ाने पर कुंटुब की वृद्धि होती है। मूंग से शिव पूजा करने पर हर सुख और ऐश्वर्य मिलता है। चने की दाल अर्पित करने पर श्रेष्ठ जीवन साथी मिलता है। कच्चे चावल अर्पित करने पर कलह से मुक्ति और शांति मिलती है। तिलों से शिवजी पूजा और हवन में एक लाख आहुतियां करने से हर पाप का अंत हो जाता है। उड़द चढ़ाने से ग्रहदोष और खासतौर पर शनि पीड़ा शांति होती है।

भगवान शिव के १२ ज्योर्तिलिंग देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित हैं. जिसे साक्षात शिवस्वरूप माना जाता है. शास्त्रों के मुताबिक हर दिन भगवान शिव २४ घंटे में एक बार शिवलिंग में स्थित होते हैं इसलिए अपनी राशि के मुताबिक ज्योर्तिर्लिंग का ध्यान करते हुए शिव आराधना करने से विशेष लाभ मिलते हैं...शिव की पूजा के बाद ऽह्रीं ओम नमः शिवाय ह्रींऽ इस मंत्र का १०८ बार जप करें. शहद, गु़ड़, गन्ने का रस, लाल पुष्प चढ़ाएं. इस राशि के व्यक्ति मल्लिकार्जुन का ध्यान करते हुए ऽओम नमः शिवायऽ मंत्र का जप करें और कच्चे दूध, दही, श्वेत पुष्प चढ़ाएं. महाकालेश्वर का ध्यान करते हुए ऽओम नमो भगवते रूद्रायऽ मंत्र का यथासंभव जप करें. हरे फलों का रस, मूंग, बेलपत्र आदि चढाएं. शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए ऽओम हौं जूं सःऽ मंत्र का जितना संभव हो जप करें और शिवलिंग पर कच्चा दूध, मक्खन, मूंग, बेलपत्र आदि चढाएं. ऽओम त्र्यंबकं यजामहे सुगंधि पुष्टिवर्धनम, उर्वारूकमिव बन्ध्नान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्.ऽ इस मंत्र का कम से कम ५१ बार जप करें. इसके साथ ही ज्योतिर्लिंग पर शहद, गु़ड़, शुद्ध घी, लाल पुष्प आदि चढाएं. ओम नमो भगवते रूद्रायऽ मंत्र का यथासंभव जप करें. हरे फलों का रस, बिल्वपत्र, मूंग, हरे व नीले पुष्प. शिव पंचाक्षरी मंत्र ऽओम नमः शिवायऽ का १०८ बार जप करें और दूध, दही, घी, मक्खन, मिश्री चढ़ाएं.

‘ह्रीं ओम नमः शिवाय ह्रींऽ मंत्र का जप करें और शहद, शुद्ध घी, गु़ड़, बेलपत्र, लाल पुष्प शिवलिंग पर अर्पित करें.
इस राशि वाले ऽओम तत्पुरूषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रूद्रः प्रचोदयात॥ऽ इस मंत्र से शिव की पूजा करें. धनु राशि वाले मंत्र जाप के अलावा शिवलिंग पर शुद्ध घी, शहद, मिश्री, बादाम, पीले पुष्प, पीले फल चढ़ाएं. त्रयम्बकेश्वर का ध्यान करते हुए ऽओम नमः शिवायऽ मंत्र का ५ माला जप करें. इसके अलावा भगवान शिव का सरसों का तेल, तिल का तेल, कच्चा दूध, जामुन, नीले पुष्प से अभिषेक करें. कुंभ राशि के स्वामी भी शनि देव हैं इसलिए इस राशि के व्यक्ति भी मकर राशि की तरह ऽओम नमः शिवायऽ का जप करें. जप के समय केदरनाथ का ध्यान करें. कच्चा दूध, सरसों का तेल, तिल का तेल, नीले पुष्प चढाएं. ओम तत्पुरूषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रूद्र प्रचोदयात॥ इस मंत्र का जितना अधिक हो सके जप करें. गन्ने का रस, शहद, बादाम, बेलपत्र, पीले पुष्प, पीले फल चढाएं.

रूद्राभिषेक महत्वपूर्ण पूजा विधि

भोले में समायी है सारी दुनिया. जगत के कण-कण में है महादेव का वास. तभी तो महादेव हर रूप में करते हैं भक्तों का कल्याण. फिर चाहे महादेव की प्रतिमा की पूजा हो या फिर लिंग रूप उनकी आराधना.
धरती पर शिवलिंग को शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है तभी तो शिवलिंग के दर्शन को स्वयं महादेव का दर्शन माना जाता है और इसी मान्यता के चलते भक्त शिवलिंग को मंदिरों में और घरों में स्थापित कर उसकी पूजा अर्चना करते हैं. यू को भोले भंडारी एक छोटी सी पूजा से हो जाते हैं प्रसन्न लेकिन शिव आराधना की सबसे महत्वपूर्ण पूजा विधि रूद्राभिषेक को माना जाता है. रूद्राभिषेक... क्योंकि मान्यता है कि जल की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और उसी से हुई है रूद्रभिषेक की उत्पत्ति. रूद्र यानी भगवान शिव और अभिषेक का अर्थ होता है स्नान करना. शुद्ध जल या फिर गंगाजल से महादेव के अभिषेक की विधि सदियों पुरानी है क्योंकि मान्यता है कि भोलभंडारी भाव के भूखे हैं. वह जल के स्पर्श मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं. वो पूजा विधि जिससे भक्तों को उनका वरदान ही नहीं मिलता बल्कि हर दर्द हर तकलीफ से छुटकारा भी मिल जाता है.

साधारण रूप से भगवान शिव का अभिषेक जल या गंगाजल से होता है परंतु विशेष अवसर व विशेष मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दूध, दही, घी, शहद, चने की दाल, सरसों तेल, काले तिल, आदि कई सामग्रियों से महादेव के अभिषेक की विधि प्रचिलत है. तो कैसे महादेव का अभिषेक कर आप उनका आशीर्वाद पाएं उससे पहले ये जानना बहुत जरूरी है कि किस सामग्री से किया गया अभिषेक आपकी कौन सी मनोकामनाओं को पूरा कर सकता है साथ ही रूद्राभिषेक को करने का सही विधि-विधान क्या हो क्योंकि मान्यता है कि अभिषेक के दौरान पूजन विधि के साथ-साथ मंत्रों का जाप भी बेहद आवश्यक माना गया है फिर महामृत्युंजय मंत्र का जाप हो, गायत्री मंत्र हो या फिर भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र.

१) जल से अभिषेक
  1. - हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें
  2. - भगवान शिव के बाल स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
  3. - ताम्बे के पात्र में ऽशुद्ध जलऽ भर कर पात्र पर कुमकुम का तिलक करें
  4. - ॐ इन्द्राय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  5. - पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय" का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  6. - शिवलिंग पर जल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें
  7. - अभिषेक करेत हुए ॐ तं त्रिलोकीनाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
  8. - शिवलिंग को वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
२) दूध से अभिषेक
  1. - शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए दूध से अभिषेक करें 
  2. - भगवान शिव के ऽप्रकाशमयऽ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
  3. - ताम्बे के पात्र में ऽदूधऽ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  4. - ॐ श्री कामधेनवे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  5. - पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवायऽ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें 
  6. - शिवलिंग पर दूध की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें. 
  7. - अभिषेक करते हुए ॐ सकल लोकैक गुरुर्वै नम: मंत्र का जाप करें 
  8. - शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें 
३) फलों का रस
  1. - अखंड धन लाभ व हर तरह के कर्ज से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करें
  2. - भगवान शिव के ऽनील कंठऽ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें 
  3. - ताम्बे के पात्र में ऽगन्ने का रसऽ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  4. - ॐ कुबेराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  5. - पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  6. - शिवलिंग पर फलों का रस की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
  7. - अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रुं नीलकंठाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
  8. - शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
४) सरसों के तेल से अभिषेक
  1. - ग्रहबाधा नाश हेतु भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक करें
  2. - भगवान शिव के ऽप्रलयंकरऽ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
  3. - ताम्बे के पात्र में ऽसरसों का तेलऽ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  4. - ॐ भं भैरवाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  5. - पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय" का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें 
  6. - शिवलिंग पर सरसों के तेल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
  7. - अभिषेक करते हुए ॐ नाथ नाथाय नाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
  8. - शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करे
५) चने की दाल
  1. - किसी भी शुभ कार्य के आरंभ होने व कार्य में उन्नति के लिए भगवान शिव का चने की दाल से अभिषेक करें
  2. - भगवान शिव के ऽसमाधी स्थितऽ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
  3. - ताम्बे के पात्र में ऽचने की दालऽ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  4. - ॐ यक्षनाथाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  5. - पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  6. - शिवलिंग पर चने की दाल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
  7. - अभिषेक करेत हुए -ॐ शं शम्भवाय नम: मंत्र का जाप करें
  8. - शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
६) काले तिल से अभिषेक
  1. - तंत्र बाधा नाश हेतु व बुरी नजर से बचाव के लिए काले तिल से अभिषेक करें
  2. - भगवान शिव के ऽनीलवर्णऽ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
  3. - ताम्बे के पात्र में ऽकाले तिलऽ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  4. - ॐ हुं कालेश्वराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  5. - पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  6. - शिवलिंग पर काले तिल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
  7. - अभिषेक करते हुए -ॐ क्षौं ह्रौं हुं शिवाय नम: का जाप करें
  8. - शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
७) शहद मिश्रित गंगा जल
  1. - संतान प्राप्ति व पारिवारिक सुख-शांति हेतु शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करें
  2. - भगवान शिव के ऽचंद्रमौलेश्वरऽ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
  3. - ताम्बे के पात्र में " शहद मिश्रित गंगा जल" भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  4. - ॐ चन्द्रमसे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  5. - पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवायऽ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  6. - शिवलिंग पर शहद मिश्रित गंगा जल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
  7. - अभिषेक करते हुए -ॐ वं चन्द्रमौलेश्वराय स्वाहाऽ का जाप करें
  8. - शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
८) घी व शहद
  1. - रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए घी व शहद से अभिषेक करें
  2. - भगवान शिव के ऽत्रयम्बकऽ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
  3. - ताम्बे के पात्र में ऽघी व शहदऽ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  4. - ॐ धन्वन्तरयै नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  5. - पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय" का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  6. - शिवलिंग पर घी व शहद की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
  7. - अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रौं जूं स: त्रयम्बकाय स्वाहा" का जाप करें 
  8. - शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
९ ) कुमकुम केसर हल्दी
  1. - आकर्षक व्यक्तित्व का प्राप्ति हेतु भगवान शिव का कुमकुम केसर हल्दी से अभिषेक करें 
  2. - भगवान शिव के ऽनीलकंठऽ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
  3. - ताम्बे के पात्र में ऽकुमकुम केसर हल्दी और पंचामृतऽ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें - ऽॐ उमायै नम:ऽ का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  4. - पंचाक्षरी मंत्र ऽॐ नम: शिवायऽ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें 
  5. - पंचाक्षरी मंत्र पढ़ते हुए पात्र में फूलों की कुछ पंखुडियां दाल दें-ऽॐ नम: शिवायऽ
  6. - फिर शिवलिंग पर पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
  7. - अभिषेक का मंत्र-ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रौं नीलकंठाय स्वाहाऽ
  8. - शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

रक्षाबन्धन

रक्षिष्ये सर्वतोहं त्वां सानुगं सपरिच्छिदम्।
सदा सन्निहितं वीरं तत्र मां दृक्ष्यते भवान्॥ भागवत​.
रक्षाबन्धन एक हिन्दू त्यौहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार २०१४ में रक्षाबन्धन रविवार​, १० अगस्त को मनाया जायेगा। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की होती है। राखी बहनें भाई को बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बन्धियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी कभी सार्वजनिक रूप से किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है।

अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है। इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न होना।
येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥

राखी और आधुनिक तकनीकी माध्यम
आज के आधुनिक तकनीकी युग एवं सूचना सम्प्रेषण युग का प्रभाव राखी जैसे त्योहार पर भी पड़ा है। मेरे ही जैसे बहुत सारे भाई अपनी बहनों से दूर प्रदेशों में व्यवसाय या नौकरी करते है पर किन्हीं कारण छुट्टी न मिलने से इनका यह त्योहार फीका हो जाता है। इण्टरनेट के आने के बाद कई सारी ई-कॉमर्स साइट खुल गयी हैं जो ऑनलाइन आर्डर लेकर राखी दिये गये पते पर पहुँचाती है। मैं भी इस बार की राखी में अपने घर पहुँचने में असमर्थ हूँ। पर जबलपुर की मेरी बहन ने मुझे राखी मेरे पते पर मुम्ब​ई भेजदिया। मैं बहुत खुश हूँ। पर मुझे अपनी बहनों से मिलने का दुख पूरे साल तक सताएगा।

मंगलवार, 5 अगस्त 2014

शिव ने पार्वती को बताए थे मृत्यु के ये 11 संकेत, कब होगी किसकी मौत

धर्म ग्रंथों में भगवान शिव को कालों का काल कहा यानी महाकाल कहा गया है। महाकाल यानी मृत्यु जिसके अधीन हो। भगवान शिव जन्म-मृत्यु, काल आदि सभी से मुक्त हैं। शिवमहापुराण में भगवान शिव ने माता पार्वती को मृत्यु के संबंध में कुछ ऐसे संकेत बताए हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। इन संकेतों को समझकर यह जाना जा सकता है कि किस व्यक्ति की मौत कितने समय में होगी।

  1. यदि अचानक शरीर सफेद या पीला पड़ जाए और लाल निशान दिखाई दे तो समझना चाहिए कि उस मनुष्य की मृत्यु ६ महीने के भीतर हो जाएगी। जब मुंह, कान, आंख और जीभ ठीक से काम न करें तो भी ६ महीने के भीतर ही मृत्यु जाननी चाहिए।
  2. जो मनुष्य हिरण के पीछे होने वाली शिकारियों की भयानक आवाज को भी जल्दी नहीं सुनता उसकी मृत्यु भी ६ महीने के भीतर हो जाती है। जिसे सूर्य, चंद्रमा या अग्नि काप्रकाश ठीक से दिखाई न दे और चारों ओर काला अंधकार दिखाई दे तो उसका जीवन भी ६ महीने के भीतर समाप्त हो जाता है।
  3. ब किसी मनुष्य का बायां हाथ लगातार एक सप्ताह तक फड़कता ही रहे, तब उसका जीवन एक मास ही शेष है-ऐसा जानना चाहिए। जब सारे अंगों में अंगड़ाई आने लगे और तालू सूख जाए, तब वह मनुष्य एक मास तक ही जीवित रहता है।
  4. त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) में जिसकी नाक बहने लगे, उसका जीवन पंद्रह दिन से अधिक नहीं चलता। यदि किसी व्यक्ति के मुंह और कंठ बार-बार सूखने लगे तो यह जानना चाहिए कि 6 महीने बीत-बीतते उसकी आयु समाप्त हो जाएगी।
  5. जब किसी व्यक्ति को जल, तेल, घी तथा दर्पण में अपनी परछाई न दिखाई दे तो समझना चाहिए कि उसकी आयु 6 माह से अधिक नहीं है। जब कोई अपनी छाया को सिर से रहित देके अथवा अपने को छाया से रहित पाए तो ऐसा मनुष्य एक महीने भी जीवित नहीं रहता।
  6. जब चंद्रमा व सूर्य के आस-पास के चमकीला घेरा काला या लाला दिखाई दे तब 15 दिन के अंदर ही उस मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। अरूंधती तारा व चंद्रमा जिसे न दिखाई दे अथवा जिसे अन्य तारे भी ठीक से न दिखाई दें, ऐसा मनुष्य की मृत्यु एक महीने के भीतर हो जाती है।
  7. यदि ग्रहों का दर्शन होने पर भी दिशाओं का ज्ञान न हो, मन में बैचेनी छाई रहे तो उस मनुष्य की मृत्यु ६ महीने में हो जाती है। जिसे आकाश में सप्तर्षि तारे न दिखाई दे, उस मनुष्य की आयु ६ महीने ही शेष समझनी चाहिए।
  8. जिस मनुष्य को उतथ्य व ध्रुव तारा अथवा सूर्यमंडल का भी दर्शन न हो, रात में इंद्रधनुष और दोपहर में उल्कापात होता दिखाई दे तथा गीध और कौवे घेरे रहें तो उसकी आयु ६ महीने से अधिक नहीं होती।
  9. जो मनुष्य अचानक सूर्य और चंद्रमा को राहू से ग्रस्त देखता है (चंद्रमा और सूर्य काले दिखाई देने लगते हैं) और संपूर्ण दिशाएं जिसे घुमती दिखाई देती हैं वह अवश्य ही ६ महीने में मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
  10. जिस व्यक्ति को अचानक नीली मक्खियां आकर घेर लें तो वास्तव में उसकी आयु एक महीना ही शेष जाननी चाहिए। 
  11. यदि गीध, कौवा अथवा कबूतर सिर पर आकर बैठ जाए तो वह मनुष्य एक महीने के भीतर ही मर जाता है-इसमें कोई संशय नहीं है।

बगला मुखी दिग्बन्धन रक्षा स्त्रोतम

ब्रह्मास्त्र प्रवक्ष्यामि बगलां नारदसेविताम् ।देवगन्धर्वयक्षादि सेवितपादपंकजाम् ।।
त्रैलोक्य-स्तम्भिनी विद्या सर्व-शत्रु-वशंकरी आकर्षणकरी उच्चाटनकरी विद्वेषणकरी जारणकरी मारणकरी जृम्भणकरी स्तम्भनकरी ब्रह्मास्त्रेण सर्व-वश्यं कुरु कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ह्लां द्राविणि-द्राविणि भ्रामिणि एहि एहि सर्वभूतान् उच्चाटय-उच्चाटय सर्व-दुष्टान निवारय-निवारय भूत प्रेत पिशाच डाकिनी शाकिनीः छिन्धि-छिन्धि खड्गेन भिन्धि-भिन्धि मुद्गरेण संमारय संमारय, दुष्टान् भक्षय-भक्षय, ससैन्यं भुपर्ति कीलय कीलय मुखस्तम्भनं कुरु-कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
आत्मा रक्षा ब्रह्म रक्षा विष्णु रक्षा रुद्र रक्षा इन्द्र रक्षा अग्नि रक्षा यम रक्षा नैऋत रक्षा वरुण रक्षा वायु रक्षा कुबेर रक्षा ईशान रक्षा सर्व रक्षा भुत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी रक्षा अग्नि-वैताल रक्षा गण गन्धर्व रक्षा तस्मात् सर्व-रक्षा कुरु-कुरु, व्याघ्र-गज-सिंह रक्षा रणतस्कर रक्षा तस्मात् सर्व बन्धयामि ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ह्लीं भो बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखि एहि-एहि पूर्वदिशायां बन्धय बन्धय इन्द्रस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय इन्द्रशस्त्रं निवारय निवारय सर्वसैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु-कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पीताम्बरे एहि-एहि अग्निदिशायां बन्धय बन्धय अग्निमुखं स्तम्भय स्तम्भय अग्निशस्त्रं निवारय निवारय सर्वसैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं अग्निस्तम्भं कुरु-कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महिषमर्दिनि एहि-एहि दक्षिणदिशायां बन्धय बन्धय यमस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय यमशस्त्रं निवारय निवारय सर्वसैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं हृज्जृम्भणं कुरु-कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चण्डिके एहि-एहि नैऋत्यदिशायां बन्धय बन्धय नैऋत्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय नैऋत्यशस्त्रं निवारय निवारय सर्वसैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु-कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं करालनयने एहि-एहि पश्चिमदिशायां बन्धय बन्धय वरुण मुखं स्तम्भय स्तम्भय वरुणशस्त्रं निवारय निवारय सर्वसैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु-कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कालिके एहि-एहि वायव्यदिशायां बन्धय बन्धय वायु मुखं स्तम्भय स्तम्भय वायुशस्त्रं निवारय निवारय सर्वसैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु-कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महा-त्रिपुर-सुन्दरि एहि-एहि उत्तरदिशायां बन्धय बन्धय कुबेर मुखं स्तम्भय स्तम्भय कुबेरशस्त्रं निवारय निवारय सर्वसैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु-कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं महा-भैरवि एहि-एहि ईशानदिशायां बन्धय बन्धय ईशान मुखं स्तम्भय स्तम्भय ईशानशस्त्रं निवारय निवारय सर्वसैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु-कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं गांगेश्वरि एहि-एहि ऊर्ध्वदिशायां बन्धय बन्धय ब्रह्माणं चतुर्मुखं मुखं स्तम्भय स्तम्भय ब्रह्मशस्त्रं निवारय निवारय सर्वसैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु-कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं ललितादेवि एहि-एहि अन्तरिक्ष दिशायां बन्धय बन्धय विष्णु मुखं स्तम्भय स्तम्भय विष्णुशस्त्रं निवारय निवारय सर्वसैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु-कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं चक्रधारिणि एहि-एहि अधो दिशायां बन्धय बन्धय वासुकि मुखं स्तम्भय स्तम्भय वासुकिशस्त्रं निवारय निवारय सर्वसैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु-कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
दुष्टमन्त्रं दुष्टयन्त्रं दुष्टपुरुषं बन्धयामि शिखां बन्ध ललाटं बन्ध भ्रुवौ बन्ध नेत्रे बन्ध कर्णौ बन्ध नसौ बन्ध ओष्ठौ बन्ध अधरौ बन्ध जिह्वा बन्ध रसनां बन्ध बुद्धिं बन्ध कण्ठं बन्ध हृदयं बन्ध कुक्षिं बन्ध हस्तौ बन्ध नाभिं बन्ध लिंगं बन्ध गुह्यं बन्ध ऊरू बन्ध जानू बन्ध हंघे बन्ध गुल्फौ बन्ध पादौ बन्ध स्वर्ग मृत्यु पातालं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं ॐ ह्लीं बगलामुखि इन्द्राय सुराधिपतये ऐरावतवाहनाय स्वेतवर्णाय वज्रहस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् निरासय निरासय विभञ्जय विभञ्जय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं भेदय भेदय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं ॐ ह्लीं बगलामुखि अग्नये तेजोधिपतये छागवाहनाय रक्तवर्णाय शक्तिहस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभञ्जय विभञ्जय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं भेदय भेदय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं ॐ ह्लीं बगलामुखि यमाय प्रेताधिपतये महिषवाहनाय कृष्णवर्णाय दण्डहस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभञ्जय विभञ्जय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं भेदय भेदय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं ॐ ह्लीं बगलामुखि वरूणाय जलाधिपतये मकरवाहनाय श्वेतवर्णाय पाशहस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभञ्जय विभञ्जय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं भेदय भेदय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं ॐ ह्लीं बगलामुखि वायव्याय मृगवाहनाय धूम्रवर्णाय ध्वजाहस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभञ्जय विभञ्जय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं भेदय भेदय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं ॐ ह्लीं बगलामुखि ईशानाय भूताधिपतये वृषवाहनाय कर्पूरवर्णाय त्रिशूलहस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभञ्जय विभञ्जय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं भेदय भेदय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं ॐ ह्लीं बगलामुखि ब्रह्मणे ऊर्ध्वदिग्लोकपालाधिपतये हंसवाहनाय श्वेतवर्णाय कमण्डलुहस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभञ्जय विभञ्जय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं भेदय भेदय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं ॐ ह्लीं बगलामुखि वैष्णवीसहिताय नागाधिपतये गरुडवाहनाय श्यामवर्णाय चक्रहस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभञ्जय विभञ्जय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं भेदय भेदय ॐ ह्लीं वश्यं कुरु ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं ॐ ह्लीं बगलामुखि रविमण्डलमध्याद् अवतर अवतर सान्निध्यं कुरु-कुरु । ॐ ऐं परमेश्वरीम् आवाहयामि नमः । मम सान्निध्यं कुरु कुरु । ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः बगले चतुर्भुजे मुद्गरशरसंयुक्ते दक्षिणे जिह्वावज्रसंयुक्ते वामे श्रीमहाविद्ये पीतवस्त्रे पञ्चमहाप्रेताधिरुढे सिद्धविद्याधरवन्दिते ब्रह्म-विष्णु-रुद्र-पूजिते आनन्द-सवरुपे विश्व-सृष्टि-स्वरुपे महा-भैरव-रुप धारिणि स्वर्ग-मृत्यु-पाताल-स्तम्भिनी वाममार्गाश्रिते श्रीबगले ब्रह्म-विष्णु-रुद्र-रुप-निर्मिते षोडश-कला-परिपूरिते दानव-रुप सहस्रादित्य-शोभिते त्रिवर्णे एहि एहि मम हृदयं प्रवेशय प्रवेशय शत्रुमुखं स्तम्भय स्तम्भय अन्य-भूत-पिशाचान् खादय-खादय अरि-सैन्यं विदारय-विदारय पर-विद्यां पर-चक्रं छेदय-छेदय वीरचक्रं धनुषां संभारय-संभारय त्रिशूलेन् छिन्ध-छिन्धि पाशेन् बन्धय-बन्धय भूपतिं वश्यं कुरु-कुरु सम्मोहय-सम्मोहय विना जाप्येन सिद्धय-सिद्धय विना मन्त्रेण सिद्धि कुरु-कुरु सकलदुष्टान् घातय-घातय मम त्रैलोक्यं वश्यं कुरु-कुरु सकल-कुल-राक्षसान् दह-दह पच-पच मथ-मथ हन-हन मर्दय-मर्दय मारय-मारय भक्षय-भक्षय मां रक्ष-रक्ष विस्फोटकादीन् नाशय-नाशय ॐ ह्लीं विष-ज्वरं नाशय-नाशय विषं निर्विषं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ क्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं विनाशय विनाशय क्लीं क्लीं ह्लीं स्वाहा ।
ॐ बगलामुखि स्वाहा । ॐ पीताम्बरे स्वाहा । ॐ त्रिपुरभैरवि स्वाहा । ॐ विजयायै स्वाहा । ॐ जयायै स्वाहा । ॐ शारदायै स्वाहा । ॐ सुरेश्वर्यै स्वाहा । ॐ रुद्राण्यै स्वाहा । ॐ विन्ध्यवासिन्यै स्वाहा । ॐ त्रिपुरसुन्दर्यै स्वाहा । ॐ दुर्गायै स्वाहा । ॐ भवान्यै स्वाहा । ॐ भुवनेश्वर्यै स्वाहा । ॐ महा-मायायै स्वाहा । ॐ कमल-लोचनायै स्वाहा । ॐ तारायै स्वाहा । ॐ योगिन्यै स्वाहा । ॐ कौमार्यै स्वाहा । ॐ शिवायै स्वाहा । ॐ इन्द्राण्यै स्वाहा । ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ह्लीं शिव-तत्त्व-व्यापिनि बगलामुखि स्वाहा । ॐ ह्लीं माया-तत्त्व-व्यापिनि बगलामुखि हृदयाय स्वाहा । ॐ ह्लीं विद्या-तत्त्व-व्यापिनि बगलामुखि शिरसे स्वाहा । ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः शिरो रक्षतु बगलामुखि रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः भालं रक्षतु पीताम्बरे रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः नेत्रे रक्षतु महा-भैरवि रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः कर्णौ रक्षतु विजये रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः नसौ रक्षतु जये रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः वदनं रक्षतु शारदे विन्ध्यवासिनि रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः बाहू त्रिपुर-सुन्दरि रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः करौ रक्षतु दुर्गे रक्ष रक्ष स्वाहा ।
ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः हृदयं रक्षतु भवानी रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः उदरं रक्षतु भुवनेश्वरि रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः नाभिं रक्षतु महामाये रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः कटिं रक्षतु कमललोचने रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः उदरं रक्षतु तारे रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः सर्वांगं रक्षतु महातारे रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः अग्रे रक्षतु योगिनि रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः पृष्ठे रक्षतु कौमारि रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः दक्षिणपार्श्वे रक्षतु शिवे रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः वामपार्श्वे रक्षतु इन्द्राणि रक्ष रक्ष स्वाहा ।
ॐ गं गां गूं गैं गौं गः गणपतये सर्वजनमुखस्तम्भनाय आगच्छ आगच्छ मम विघ्नान् नाशय नाशय दुष्टं खादय खादय दुष्टस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय अकालमृत्युं हन हन भो गणाधिपते ॐ ह्लीम वश्यं कुरु कुरु ॐ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।
अष्टौ ब्राह्मणान् ग्राहयित्वा सिद्धिर्भवति नान्यथा । भ्रूयुग्मं तु पठेत नात्र कार्यं संख्याविचारणम् ।।
यन्त्रिणां बगला राज्ञी सुराणां बगलामुखि । शूराणां बगलेश्वरी ज्ञानिनां मोक्षदायिनी ।।
एतत् स्तोत्रं पठेन् नित्यं त्रिसन्ध्यं बगलामुखि । विना जाप्येन सिद्धयेत साधकस्य न संशयः ।।
निशायां पायसतिलाज्यहोमं नित्यं तु कारयेत् । सिद्धयन्ति सर्वकार्याणि देवी तुष्टा सदा भवेत् ।।
मासमेकं पठेत् नित्यं त्रैलोक्ये चातिदुर्लभम् । सर्व-सिद्धिमवाप्नोति देव्या लोकं स गच्छति ।।

गणेश चालीसा

||दोहा||
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
 ||चौपाई ||
जय जय जय गणपति गणराजू।मंगल भरण करण शुभ काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्वविख्याता ॥
ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥
कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥
अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥
कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥
बुद्घ परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥
चरण मातुपितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥
॥दोहा॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ॥

शुभ मुहूर्त देखना


शुभ मुहूर्त
भूमि। प्लाट क्रय  विक्रय मुहूर्त :-  भूमि एवं प्लाट खरीदने या बेचने हेतु वैशाख , ज्येष्ठ, अषाढ़ , मार्गशीर्ष, माघ, व फाल्गुन मास की द्वितीय, पंचमी, षष्ठी, दशमी, एकादशी  व पूर्णिमा तिथि में बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार, सोमवार, अदि वारों में मृगशिरा, अश्लेशा, मघा, विशाखा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़, पूर्वाभाद्रपद, मूल, रेवती, उत्तराषाढ़,  उत्तराभाद्रपद, हस्त, चित्रा, स्वाति, शतभिषा, नक्षत्र उत्तम रहते हैं ।
सिद्ध योग देखना:
अगर शुक्रवार को नंदा तिथि पड़ती हो, बुधवार को भद्रा तिथि पड़ती हो, शनिवार को रिक्त तिथि पड़ती हो, मंगलवार को जया तिथि  पड़ती हो  तथा  गुरूवार को पूर्णा तिथि पड़ती हो तो उस दिन सिद्ध मुहूर्त होता है । नंदा तिथि, भद्रा तिथि, रिक्ता तिथि, जया तिथि  तथा पूर्णा तिथि के बारे में जानने के लिए कृपया पंचांग एवं कलेंडर के वेबपेज पर देखें ।
मृत्यु योग देखना:
अगर रविवार व मंगलवार को नंदा तिथि पड़ती हो, सोमवार व शुक्रवार को भद्रा तिथि पड़ती हो, गुरूवार को रिक्ता तिथि पड़ती हो, शनिवार को पूर्णा तिथि पड़ती हो, तथा बुधवार, को जया तिथि पड़ती हो तो मृत्यु योग बनता है। नंदा तिथि, भद्रा तिथि, रिक्ता तिथि, जया तिथि  तथा पूर्णा तिथि के बारे में जानने के लिए कृपया पंचांग एवं कलेंडर के वेबपेज पर देखें।
सामग्री खरीदने बेचने का मुहूर्त:
तीनों पूर्वा, विशाखा, भरनी, कृतिका, अश्लेषा, नक्षत्र तथा शुभ दिन शुक्र, गुरु, सोमवार, बुधवार, आदि इन वारों में वस्तु या चीज को बेचना चाहिये। तथा चित्रा, रेवती, स्वाति, शतभिषा, अश्विनी, धनिष्ठा, श्रवण  नक्षत्रों में  एवं और गुरूवार, शुकवार, सोमवार, बुधवार, इन वारों में वस्तु या चीज खरीदना चाहिये  यह शुभ रहता है ।
औषधि या इलाज कराने या दवाई शुरू करने का मुहूर्त
रेवती, अश्विनी, पुनर्वशु, पुष्य, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, अनुराधा, मूल, मृगशिरा, इन नक्षत्रों में दवाई या इलाज शुरू करने से जल्दी रोग दूर हो जाता है एवं शुभ रहता है ।
कुआ पूजने का मुहूर्त:
कुआ पूजन वर्ष के चैत्र, पौष, मास तथा पुरसोत्तम मास को छोड़कर सभी महीनों की २, ३, ५, ६, ७, ८, १०, ११, १२, १३, एवं पूर्णिमा तिथियों को  तथा सोमवार, बुधवार, गुरूवार, शुभ वार रहते हैं । मूल, श्रवण, मृगशिरा, पुनर्वशु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, आदि नक्षत्र शुभ रहते हैं।तथा मेष, कर्क, सिंह,तुला, व मकर, लग्न शुभ रहते हैं ।

गृह आरम्भ करने या नींव धरने का मुहूर्त:-गृह आरम्भ करने या नींव धरने  के लिए शुभ तिथि , वार, नक्षत्र, लग्न आदि निम्न प्रकार से हैं :-
शुभ महीने: श्रावण , वैशाख, कार्तिक, मार्गशीर्ष, फाल्गुन मास नींव धरने के लिए उत्तम रहते हैं ।
शुभ तिथियाँ : उपरोक्त सभी महीनों की शुभ तिथि , २, ३, ५, ६, ७, १०, ११, १२, १२, एवं पूर्णिमा  तिथि नीवं धरने के लिए शुभ रहती हैं । शुभ वार : सोमवार, बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार, व शनिवार, आदि उत्तम रहते हैं।
शुभ नक्षत्र: मृगशिरा, रेवती, शतभिषा, चित्रा, पुष्य, अनुराधा, रोहिणी, तीनो उत्तरा, हस्त, स्वाति व धनिष्ठा नक्षत्र उत्तम रहते हैं । शुभ लग्न : वृष, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ, आदि की स्थिर लग्न । उपरोक्त सभी घटकों में नींव धरना या गृह आरम्भ करना शुभ रहता है ।
गृह प्रवेश मुहूर्त:
गृह प्रवेश उत्तरायण काल में शुभ रहता है । गृह प्रवेश वैशाख , ज्येष्ठ, मार्गशीर्ष, माघ,एवं फाल्गुन  मास , इन सभी महीनों की २, ३, ५, ६, ७, १०, ११, १३, एवं पूर्णिमा  तिथि  व सोमवार, बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार, व शनिवार, शुभ रहते हैं ।
शुभ नक्षत्र: रोहिणी, मृगशिरा, तीनो, उत्तरा, चित्रा, अनुराधा, व रेवती, तथा जन्म लग्न से ३, ६, १०, ११ वें पड़ने वाली स्थिर लग्न शुभ रहती हैं।
चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भरना व शपथ लेने के लिए मुहूर्त पंच, सरपंच, पार्षद, प्रधान, विधान सभा, लोक सभा, राष्ट्रपति, अध्यक्ष  आदि के लिए चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भरने के लिए  तथा  जीतने पर शपथ ग्रहण करने  आदि के लिए शुभ मुहूर्त जरूरी होता है । इसके लिए शुभ मुहूर्त के लिए शुभ तिथियाँ: २, ३, ५, ९, १०, १२, तथा पूर्णिमा तिथि अच्छी रहती हैं । 
शुभ वार:  सोमवार, बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार, शुभ रहते हैं ।
शुभ नक्षत्र:  अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वशु, पुष्य, तीनों उत्तरा , हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, रेवती, उपरोक्त नक्षत्र  मुहूर्त के लिए शुभ रहते हैं।
शुभ लग्न: मेष, कर्क, तुला, मकर, लग्न शुभ रहती हैं ।  

ऐसे करें गणेश आराधना..अवश्य होगा लाभ—


एह्येहि हेरंब महेशपुत्र समस्त विघ्नौद्या विनाशदक्ष

मांगल्य पूजा प्रथम प्रधान गृहाण पूजां भगवन नमस्ते।।

हे महेशपुत्र समस्त विघ्नों के विनाश करने वाले देवाधिदेव मांगल्य कार्यों में प्रधान प्रथम पूज्य गजानन, गौरी पुत्र आपको नमस्कार है।

गजानन, गौरी पुत्र, महेश पुत्र, एकदंत, वक्रतुंड, विनायक, लंबोदर, भालचंद्र ऐसे नाना प्रकार के नामों से पूज्य श्री गणेशजी की आराधना जो भक्त भाद्रपद शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक करता है। उस भक्त के जन्म-जन्मांतर के पाप नष्‍ट हो जाते हैं एवं उसकी हर मनोकामना गणेशजी पूर्ण करते है।
जितने भी ग्रह-नक्षत्र, राशियां है उनको गणेशजी का अंश माना गया है। यह सत्य है। मन, कर्म, वचन से जो गणेशजी की आराधना करता है, अनुष्‍ठान करता है, उस पर गणेशजी की विशेष अनुकंपा होती है।
गणेशजी की आराधना विद्यार्थी विद्या प्राप्ति के लिए करें, जिसको धन पाना है वह धन प्राप्ति के लिए, मोक्ष पाने वाला मोक्ष प्राप्ति के लिए, पुत्र की कामना वाले व्यक्ति पुत्र प्राप्ति के लिए करें, रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश सभी प्रकार के भक्तों की इच्छा अवश्‍य पूर्ण करते हैं। भगवान गणेश की आराधना सच्चे मन से करने पर हर मनोरथ पूर्ण होंगे।
विद्यार्थी लभते विद्यां, धनार्थी लभते धनम्

प‍ुत्रार्थी लभते पुत्रान्, मोक्षार्थी लभते गतिम्।।

देवताओं के भी पूज्य गजानन जी को यक्ष, दानव, किन्नर जो भी पूजता है। वह सुख-संपदा, राज्य भोग, सब प्राप्त कर लेता है। यदि मनुष्य सच्चे दिल से गौरी पुत्र का स्मरण करें तो अवश्य ही समस्त सिद्धियों का ज्ञाता एवं पराक्रमी होता है। श्री गणेश जी के स्त्रोत को जो नित्य जपता है, वह अवश्‍य ही वांछित फल पाता है। इसमें संशय नहीं है।
नमो व्रातपतये नमो गणपतये
नम: प्रथमपतये नमोस्तेतु लंबोदरायैकदन्ताय
विघ्नविनाशिने शिवसुताय श्री वरदमूर्तये नमो नम: ।।
गजानन गणपति को बार-बार नमस्कार है। हे विघ्न विनाश करने वाले, लंबोदर, एकदंत, प्रथमपूज्य, शिवसुताय इस भक्त का प्रणाम स्वीकार करो। इस प्रकार गणेशजी से प्रार्थना करें। वह अवश्‍य आपके मनोरथ पूर्ण करेंगे।

हुताशन योग

अब तक के अध्ययन से आप जान चुके हैं कि तिथि और वार के संयोग से किस प्रकार भिन्न भिन्न योगों का  निर्माण होता है। आइये इस क्रम को जारी रखते हुए हम अगले योग की बात करें जिसका नाम है। हुताशन नामक यह योग भी अशुभ फलदायी है। यह योग किस प्रकार से बनता है व इसका क्या पभाव है आइये इसे समझें।

हुताशन योग बनने के लिए तिथि और वार में किस प्रकार का संयोग होना चाहिए अर्थात हुताशन योग कैसे बनता है आइये पहले इसे जानलें
१.रविवार का दिन हो और तिथि हो द्वादशी,  इस बार और तिथि का संयोग होने पर हुताशन योग बनेगा
२.दिन हो सोमवार का और तिथि हो षष्टी तब यह अशुभ योग बनता है।
३.जब मंगल के दिन सप्तमी तिथि पड़े तब इस योग का निर्माण होता है। 
४.अष्टमी तिथि जब बुधवार के दिन पड़ता है तब हुताशन योग बनता है। 
५.तिथि हो नवमी और दिन हो गुरूवार का तो इस संयोग का फल हुताशन योग होता है।
६.शुक्रवार के दिन जब कभी दशमी तिथि पड़ जाती है तब भी, हुताशन योग बनाता है
७.शनिवार के दिन जब एकादशी तिथि हो तब आपको कोई शुभ काम करने की इज़ाजत नहीं दी जाती है क्योंकि यह अशुभ विष योग का निर्माण करती है। 

विषयोग

जन्मपत्रिका में जब शनि और चन्द्रमा कि युति हो तो बिस योग बन जाता है।
जब आपके ह्रदय में ऐसी इक्षा प्रकट हो कि अब आपका जीवन बिसमय हो गया, अब हमें जीने की इच्छा नहीं है। हम मरने का प्रयास करने लगें, तो इस समय आपको देखना चाहिए की कहीं आपकी पत्रिका में बिस योग तो नहीं, अगर शनि और चन्द्रमा की युती होती है तो जीवन में तनाव का योग बन जाता है, मानसिक​
अशान्ति का योग बन जाता है। क्योंकि मन के मालिक चन्द्रमा हैं, शरीर के अन्दर मन का ही तो प्रभाव रहता है, मन यदि कहता है कि आप राजा बन गये तो सचमुच आपके अन्दर राज सत्ता पाने की चाह प्रकट​
हो जाती है। परन्तु जब आपकी कुण्डली में बिस योग बनता है तो आपक मन सून्य हो जाता है, यदि यह योग बन रहा है तो इसका प्रभाव आपके कैरियर पर पड़ता है, किसी भी कार्य का आप डिसीजन ही नहीं ले
पायेंगे कि हम क्या करें ? आप यह भी सोच सकते है की आपसे अच्छा इन्शान दूसरा कोई नहीं है, आप जो 
कर रहे हैं वह अच्छा कर रहे हैं, लेटे लेटे आप यह सोचोगे की आपने बहुत बड़ी फैक्ट्री खड़ी करली है या बहुत बड़े व्यापारी बन गये हैं, ऐसे क​ई खयाली पुलाव पकाते रहेंगे। यह बिस योग आपके जीवन को भटकाओ का योग बना देता है। शनि विष योग एक ऐसा योग है जिससे जातक नकारात्मक सोच से घिर जाता है और बने बनाए काम बिगड़ जाते हैं

विषयोग की स्थिति: —
कुण्डली में विषयोग ) का निर्माण शनि और चन्द्र की स्थिति के आधार पर बनता है.शनि और चन्द्र की जब युति होती है तब अशुभ विषयोग बनता है. लग्न में चन्द्र पर शनि की तीसरी,सातवीं अथवा दशवी दृष्टि होने पर यह योग बनता है.कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चन्द्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र का हो और दोनों का परिवर्तन योग हो या फिर चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों की एक दूसरे पर दृष्टि हो तब विषयोग की स्थिति बनती है.सूर्य अष्टम भाव में, चन्द्र षष्टम में और शनि द्वादश में होने पर भी इस योग का विचार किया जाता है. कुण्डली में आठवें स्थान पर राहु हो और शनि मेष, कर्क, सिंह या वृश्चिक लग्न में हो तो विषयोग भोगना होता है.विषयोग चंद्र-शनि से बनता है। दांपत्य जीवन तब नष्ट होता है जब सप्तम भाव या सप्तमेश से युति दृष्टि संबंध हो। जैसे सप्तम भाव में धनु राशि हो और सप्तम भाव में शनि हो और लग्न में गुरु-चंद्र हो तब यह दोष लगेगा या शनि-चंद्र सप्तम भाव में हो तब दांपत्य जीवन को प्रभावित करेगा। इसी प्रकार विस्फोटक योग शनि-मंगल से बनता है। यदि शनि-मंगल की युति सप्तम भाव में हो या शनि सप्तम भाव में हो व मंगल की दृष्टि पड़ती हो तो या शनि सप्तम भाव में बैठे मंगल पर दृष्टिपात करता हो या सप्तमेश शनि-मंगल से पीड़ित हो तो दांपत्य जीवन नष्ट होता है अन्यत्र हो तो दांपत्य जीवन नष्ट नहीं होता।जन्म पत्रिका में कितने भी शुभ ग्रह हों और इन योगों में से कोई एक भी योग बनता है तो सभी शुभ प्रभावों को खत्म कर देता है। यदि उपरोक्त योग जहाँ बन रहे हैं, उन पर यदि शुभ ग्रह जैसे गुरु की दृष्टि हो तो कुछ अशुभ परिणाम कम कर देता है।एक उदाहरण कुंडली से जानें कि उच्च का चंद्रमा एक युवती के लग्‍न में है अतः युवती सुंदर तथा गौर वर्ण तो है लेकिन इसका दांपत्य जीवन खराब है। सप्तमेश शुक्र द्वादश भाव में अग्नि तत्व की राशि मेष में बैठा है अतः दांपत्य जीवन खराब है एवं शनि की दसवीं दृष्टि चंद्रमा पर पड़ रही है, जो विष योग बना रही है अतः इसका सारा जीवन दुख व अभावों में बीतेगा, वहीं इसकी पत्रिका में राहू व केतु मध्य सारे ग्रह होने से कालसर्प योग भी बन रहा है, जो कष्टों को और अधिक प्रभावित कर रहा है। लग्न पर शनि के अलावा किसी शुभ ग्रह की दृष्टि भी नहीं है। उदाहरण कुंडली से पता चलता है कि किस प्रकार विषयोग जीवन पर प्रभाव डालता है।

यदि शनि-मंगल या शनि-चंद्र की युति सप्तम भाव में हो या आपसी दृष्टि संबंध बनता हो तो निश्चित ही दांपत्य जीवन नरक बन जाता है। शनि-मंगल की युति यदि चतुर्थ या दशम भाव में बनती हो तो ऐसा जातक माता सुख से, परिवार से, जनता के बीच आदि कार्यों से हानि पाता है, उसी प्रकार दशम भाव में बनने वाला योग पिता से, राज्य से, नौकरी से, व्यापार से, राजनीति से आदि मामलों से हानि पाता हैं।

ऐसा जातक नौकरी में भटकता रहता है, स्थानांतरण होते रहते हैं एवं अपने अधिकारियों से नहीं बनती। यदि शनि-मंगल की युति तृतीय भाव में हो तो भाइयों से नहीं बनती व मित्र भी दगा कर जाते हैं। साझेदारी में किए गए कार्यों में घाटा होता हैं। सूर्य-चंद्र की युति सदैव अमावस्या को ही होती है, इसे अमावस्या योग की संज्ञा दी गई है, यह योग भी जिसकी पत्रिका में जिस भाव में बनेगा, उस भाव को कमजोर कर देगा।

– अगर कोई नदी में कचरा या पूजन सामग्री फेंकता है उसे ज्योतिष के अनुसार विषयोग बनाता है और धन का नुकसान उठाना पड़ता है।
—विष योग किस प्रकार बनता है??॥ ज्योतिषशास्त्र के अनुसार विषयोग तब बनता है जब वार और तिथि के मध्य विशेष योग बनता है। जेसे—
–जब रविवार के दिन चतुर्थी तिथि पड़े तब इस योग का निर्माण होता है।
— सोमवार का दिन हो और षष्टी तिथि पड़े तब यह अशुभ योग बनता है।
—मंगलवार का दिन हो और तिथि हो सप्तमी, इस बार और तिथि के संयोग से भी विष योग बनता है।
—द्वितीया तिथि जब बुधवार के दिन पड़े तब विष योग का निर्माण होता है।
—अष्टमी तिथि हो और दिन हो गुरूवार का तो इस संयोग का फल विष योग होता है।
—शुक्रवार के दिन जब कभी नवमी तिथि पड़ जाती है तब भी विष योग बनाता है।
—शनिवार के दिन जब सप्तमी तिथि हो तब आपको कोई शुभ काम करने की इज़ाजत नहीं दी जाती है क्योंकि यह अशुभ विष योग का निर्माण करती है।

विषयोग में शनि चन्द्र की युति का फल: –

जिनकी कुण्डली में शनि और चन्द्र की युति प्रथम भाव में होती है वह व्यक्ति विषयोग के प्रभाव से अक्सर बीमार रहता है.व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में भी परेशानी आती रहती है.ये शंकालु और वहमी प्रकृति के होते हैं.जिस व्यक्ति की कुण्डली में द्वितीय भाव में यह योग बनता है पैतृक सम्पत्ति से सुख नहीं मिलता है.कुटुम्बजनों के साथ इनके बहुत अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते.गले के ऊपरी भागों में इन्हें परेशानी होती है.नौकरी एवं कारोबार में रूकावट और बाधाओं का सामना करना होता है.
तृतीय स्थान—में विषयोग सहोदरो के लिए अशुभ होता है.इन्हें श्वास सम्बन्धी तकलीफ का सामना करना होता है.चतुर्थ भाव का विषयोग माता के लिए कष्टकारी होता है.अगर यह योग किसी स्त्री की कुण्डली में हो तो स्तन सम्बन्धी रोग होने की संभावना रहती है.जहरीले कीड़े मकोड़ों का भय रहता है एवं गृह सुख में कमी आती है.पंचम भाव में यह संतान के लिए पीड़ादायक होता है.शिक्षा पर भी इस योग का विपरीत असर होता है.षष्टम भाव में यह योग मातृ पक्ष से असहयोग का संकेत होता है.चोरी एवं गुप्त शत्रुओं का भय भी इस भाव में रहता है.
सप्तम स्थान —कुण्डली में विवाह एवं दाम्पत्य जीवन का घर होता है इस भाव मे विषयोग दाम्पत्य जीवन में उलझन और परेशानी खड़ा कर देता है.पति पत्नी में से कोई एक अधिकांशत: बीमार रहता है.ससुराल पक्ष से अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते.साझेदारी में व्यवसाय एवं कारोबार नुकसान देता है.अष्टम भाव में चन्द्र और शनि की युति मृत्यु के समय कष्ट का सकेत माना जाता है.इस भाव में विषयोग होने पर दुर्घटना की संभावना बनी रहती है.नवम भाव का विषयोग त्वचा सम्बन्धी रोग देता है.यह भाग्य में अवरोधक और कार्यों में असफलता दिलाता है.दशम भाव में यह पिता के पक्ष से अनुकूल नहीं होता.सम्पत्ति सम्बन्धी विवाद करवाता है.नौकरी में परेशानी और अधिकारियों का भय रहता है.एकादश भाव में अंतिम समय कष्टमय रहता है और संतान से सुख नहीं मिलता है.कामयाबी और सच्चे दोस्त से व्यक्ति वंचित रहता है.द्वादश भाव में यह निराशा, बुरी आदतों का शिकार और विलासी एवं कामी बनाता है.
प्रसिद्द फिल्म अदाकारा “”ऐश्वर्या राय बच्चन की जन्म कुंडली में भी यह “विष योग” मोजूद हें..

विषयोग के उपाय: —-
–भगवान नीलकंठ महादेव की पूजा एवं महामृत्युजय मंत्र जप से विष योग में लाभ मिलता है. शनि देव एवं चन्द्रमा की पूजा भी कल्यणकारी होती है.
—आप अगर किसी नई परियोजना पर कार्य करने की सोच रहे हैं तो विषयोग और हुताशन योग से परहेज रखें। इस योग में अपनी योजना की शुरूआत नहीं करें। इस योग में घर की नींव न डालें, मकान या दुकान न खरीदें। अगर आप किसी शुभ कार्य के सम्बन्ध में यात्रा पर निकलने की तैयारी कर रहे हैं तो इस योग के गुजर जाने के बाद ही यात्रा पर जाएं तो अच्छा रहेगा क्योंकि यह योग यात्रा के संदभ शुभ फलदायी नहीं कहा गया है।