शनिवार, 4 मई 2024

हिन्दू या हिन्दु कौन?

अद्भुतकोषके अनुसार हिन्दु और हिन्दू दोनों शब्द पुल्लिंग है। दुष्टों का दमन करने वाले हिंदू कहे जाते हैं। सुंदर रूपसे सुशोभित और दुष्टोंके दमनमें दक्ष । इन दोनों अर्थोंमें भी इन शब्दों का प्रयोग होता है-
हिंदुहिंदूश्च पुंसि दुष्टानां च विघर्षणे।रूपशालिनि दैत्यारौ (अद्भुतकोष)

हेमंतकवि कोषके अनुसार हिंदू उसे कहा जाता है जो परंपरासे नारायण आदि देवताओं का भक्त हो।हिंदूर्हि नारायणादि देवताभक्ततः।

मेरुतंत्रके अनुसार जो हीनाचरण को निंद्य समझ कर, उसका त्याग करें वह हिंदू कहलाता है।
हीनं च दूषयत्येव हिन्दुरित्युच्यते प्रिये।

शब्दकल्पद्रुम कोश के अनुसार
हीनता से रहित साधु जाति विशेष हिंदू है। हीनं दूषयति इति हिन्दू

पारिजात हरण नाटक के अनुसार
जो अपनी तपस्यासे, दैहिक पापों तथा चित्तको दूषित करने वाले दोषोंका नाश करता है, तथा जो शस्त्रोंसे अपने शत्रु समुदायका भी नाश करता है वह हिंदू कहलाता है।

रामकोष के अनुसार- हिंदू दुर्जन नहीं होता, न अनार्य होता है, ना निंदक ही होता है। जो सद्धर्म पालक विद्वान् और श्रौतधर्म परायण है , वह हिंदू है।
हिंदुर्दुष्टो न भवति नानार्यो न विदूषकः।
सद्धर्मपालको विद्वान् श्रौतधर्मपरायणः।।

हिंदूशब्द के अर्थ - सौम्य, सुंदर, सुशोभित, शीलनिधि, दमशील और दुष्टदलनमें दक्ष। (विचारपीयूष)

अरबी कोषमें हिंदू शब्दका अर्थ खालिस अर्थात् शुद्ध होता है। ना कि चोर आदि मलिन निकृष्ट अर्थ।

यहूदियोंके मत में हिंदूका अर्थ शक्तिशाली वीर पुरुष होता है।

हिन्दुपद वाच्यों की कतिपय मुख्य परिभाषाएं

वेदादि शास्त्रोंको मानने वाली  जाति ही हिंदू जाति है ।

जो श्रुति - स्मृति - पुराण - इतिहास  प्रतिपादित कर्मोंके आधार पर अपनी लौकिक पारलौकिक उन्नति पर विश्वास रखता है वह हिंदू है ।

अपने वर्णाश्रम धर्मानुकूल आचार - विचारके द्वारा जीवन व्यतीत करने वाला  और  वेद शास्त्रोंको अपना  धर्म ग्रंथ मानने वाला ही हिंदू है ।

श्रुतिस्मृत्यादिशास्त्रेषु प्रामाण्यबुद्ध्यावलंब्य श्रुत्यादिप्रोक्ते धर्मे विश्वासं-निष्ठां च यः करोति स एव वास्तव हिंदुपदवाच्यः।

वेदशास्त्रोक्तधर्मेषु वेदाद्युक्ताधिकारिवान्।
आस्थावान् सुप्रतिष्ठिश्च सोऽयं हिंदुः प्रकीर्तितः।।

2. जो गोभक्ति संपन्न है, वेद और प्रणवादिमें जिसकी दृढ़ आस्था है, तथा पुनर्जन्मोंमें जिसका विश्वास है, वही वास्तवमें हिंदू कहने योग्य है। (इस परिभाषाके अनुसार जैन, बौद्ध , सिक्ख आदि हिंदू मान्य हैं) 

गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवादौ दृढामतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिंदुरिति स्मृतः।।

3. श्रुति स्मृति पुराण इतिहास में निरूपित समस्त दुर्गुणों का/ दोषोंका जो हनन करें वह हिंदू है। श्रुत्यादि प्रोक्तानि सर्वाणि दूषणानि हिनस्तीति हिन्दुः।

4. वृद्ध स्मृति के अनुसार हिंसा से दुखित होने वाला, सदाचरण तत्पर (वर्ण उचित आचरण संपन्न ) वेद, गोवंश और देव प्रतिमा की सेवा करने वाला  हिंदू कहलाने योग्य है-

हिंसया दूयते यश्च सदाचारतत्परः।
वेदगोप्रतिमासेवी स हिंदुमुख शब्दभाक्।।

5. आधुनिक सुधारक हिंदुओंके मतमें हिंदू शब्द विचार नवनीत ग्रंथमें RSS के गुरु माने जाने वाले गोलवलकर जी पृष्ठ 44 और 45 पर हिंदू अपरिभाष्य है - इस शीर्षकसे आप कहते हैं कि - "जैसे सूर्य चंद्रकी परिभाषा हो सकने पर भी चरम सत्यकी परिभाषा नहीं हो सकती, वैसे ही मुसलमान ईसाईकी परिभाषा है, पर हिंदू अपरिभाषित ही है"।

इस बातका खंडन करते हुए धर्मसम्राट स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराज विचारपीयूष नामक ग्रंथमें कहते हैं। जिन ग्रंथोंको आप प्रमाण रूप में उपस्थित करते हैं उन्हीं ग्रंथोंमें ईश्वर तककी परिभाषाएं बतलाई गई हैं।
सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म विज्ञानमानन्दं ब्रह्म आदि आदि !

आश्चर्य है कि जो हिंदुत्वके संबंधमें कुछ भी नहीं जानता' जो उसकी परिभाषा भी नहीं कर सकता, वही दुनियाके सामने बढ़-चढ़कर घमंड की बात करता है। ऐसे  संघ समूहोंकी संसारमें कमी नहीं, जो संसारमें अपनेको ही सर्वोत्कृष्ट मानते हैं।
( विचारपीयूष ग्रंथमें पृष्ठ 336 से 348 तक तथा पृष्ठ 5 से 50 तक)

इसी विचारधाराको मानने वाले कुछ लोग कहते हैं कि सिंधु से लेकर सिंधु पर्वतपर्यंत भारत भूमिको जो पितृभू और पुण्यभू मानता है वही हिंदू है।
किंतु उनकी यह परिभाषा अव्याप्ति, अतिव्याप्ति दोषोंसे पूर्ण है। इसके अनुसार प्राचीन कालके वे हिंदू जो दूसरे द्वीपोंमें रहते थे, हिंदू ही नहीं कहे जा सकते।

इसी विचारधारा के कुछ लोग कहते हैं कि जो हिंदुस्तानमें रहता है वह हिंदू है। पर ऐसा नहीं है, ऐसा मानने पर यहां विभिन्न धर्मोंके रहने वाले लोग हिंदू कहे जाने लगेंगे, जबकि वे स्वयं स्वीकार नहीं है और हमारी उपर्युक्त परिभाषाओंके अंतर्गत भी वे नहीं आते इसलिए यह विचार पूर्ण नहीं है। यहां तक लेखको पढ़नेके बाद, और हमारे द्वाराअनेक धर्म ग्रंथोंके उद्धरण देनेके बाद, आप लोग यह तो समझ ही गए होंगे कि, हमारे यहां यानी धर्मशास्त्रोंमें हिंदू शब्द परिभाष्य है या अपरिभाष्य।

सारगर्भित_परिभाषा जो वेदादि शास्त्रानुसार वेद शास्त्रोक्त धर्म में विश्वासवान् तथा स्थित है। वह हिंदू है। वेदादि शास्त्रों में वेदाध्ययन, अग्निहोत्र, बाजपेय, राजसूय, आदि कुछ धर्म ऐसे हैं जिनका अनुष्ठान जन्मना ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य ही कर सकते हैं । निषादस्थपतियाग, रथकारेष्टि जैसे कुछ कर्मोंका शूद्र ही अनुष्ठान कर सकते हैं।

कुछ सत्य ,दया ,क्षमा ,अहिंसा ईश्वरभक्ति  तत्वज्ञान आदिका अनुष्ठान मनुष्य मात्र कर सकते हैं । किंतु वे सभी वेदादि शास्त्रोंका प्रामाण्य मानने वाले तथा अपने अधिकार अनुसार वेदादि शास्त्रोक्त धर्मका अनुष्ठान करने वाले हिंदू हैं। जन्मना ब्राह्मण आदि का भी सब कर्मोंमें अधिकार नहीं है।

 ब्राह्मण एवं वैश्य का राजसूययज्ञमें अधिकार नहीं है । ब्राह्मण क्षत्रिय दोनोंका वैश्यस्तोमयागमें अधिकार नहीं है । निषादस्थपतीष्टि में उक्त तीनों का अधिकार नहीं है। 

विशेषतः- हिंदूशास्त्रानुसार जिनके पुनर्जन्म विश्वास पूर्वक दाएभाग ,विवाह, अंत्येष्टि, मृतक श्राद्धादि कर्म होते हैं ,वे सभी हिंदू हैं। गाय में जिसकी भक्ति हो, प्रणव आदि ईश्वर नामों में यथा अधिकार जिसकी निष्ठा हो, तथा पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो, वह हिंदू है।

भारतका नाम ऋग्वेद में सप्तसिंधु या संक्षिप्त नाम सिंधु आया है। न कि आर्यावर्त या भारतवर्ष ।

वेदों में सप्तसिंधवः देशके अतिरिक्त किसी देशका स्पष्ट उल्लेख नहीं है। सनातन प्रसिद्धिके अनुसारवे सातों नदियां अखंड भारतको द्योतित करती हैं ।

गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिंधुकावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।

सिन्धवः शब्द सिंधु नदी के पार्श्ववर्ती देशों एवं वहां के निवासियों के लिए भी प्रयुक्त हुआ है ।

वेदों में सकार के स्थान में हकार का भी प्रयोग हो जाता है। इस संबंधमें सरस्वती का हरस्वती आदि वैदिक उदाहरण हैं। केसरी तथा केहरी आदि लौकिक उदाहरण भी प्रसिद्ध हैं।
तथा सिंधु -सिंधवः, हिन्धु- हिन्धवः चलने लगा ।

कालक्र से धकारका परिवर्तन दकार रूप में हुआ और हिंदू नाम चल पड़ा ।

लक्षणा वृत्ति से हिंदू शब्द के हिंदू देश यानी हिंदुस्तान और वहां के निवासी हिंदू दोनों अर्थ होते हैं।

हिमालयं समारभ्य यावदिन्दुसरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिंदुस्थानं प्रचक्षते।।

विशेष जानकारीके लिए प्रत्येक हिन्दू धर्मसम्राट् स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराजका #विचार_पीयूष ग्रन्थ अवश्य पढ़ें ।

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