अमावस्या के दिन तथा जिस दिन घरमें श्राद्ध हो ( पार्वण या एकोद्दिष्ट) तो इन अवसरों पर यदि मंथन - क्रिया (दही बिलोना) किया जाए तो उससे होने वाला मट्ठा मदिराके समान तथा घी शास्त्रोंमें गोमांसके समान माना गया है।
प्रमाण
अमावस्यां पितृश्राद्धे मन्थनं यस्तु कारयेत्।
तत्तक्रं मदिरातुल्यं घृतं गोमांसवत्स्मृतम् ।।
(स्कंदपुराण_प्रभास-206/56, व्याघ्रपादस्मृति-15
तात्पर्य
अमावस्या और श्राद्ध वाले दिन में दधि-मंथन न करके दही को ही निमंत्रित ब्राह्मणोंको खिलाकर खुद भी खाना चाहिए। इसी प्रकार दुग्ध आदिका भी उस दिन प्रयोग करना चाहिए ।
यदि कोई व्यक्ति यूं कहें कि हम तो श्राद्ध आदि करते नहीं, तो क्या उसके ऊपर शास्त्रका निषेध लागू नहीं होगा?
निषेध तो लागू होगा ही, वह तो दोगुना अपराधी माना जाएगा ।
एक अपराध श्राद्ध न करना
और दूसरा उस दिन मंथन आदि करना ।
इसलिए अपने माता-पिताका एकोद्दिष्ट , महालय / पार्वण आदि श्राद्ध तो अवश्य करें ही।
उस दिन दधि मंथन कार्य को भी बंद रखें।
शास्त्रोंमें निषेध और भी हो सकते हैं।
हम सभीका शास्त्रकी आज्ञाका पालन करनेमें ही परम कल्याण है, प्रमादी बनकर मनमानी करने में नहीं हैं।
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