शुक्रवार, 8 मई 2020

हां जी हां मजदूर हूं मैं..

हां जी हां मजदूर हूं मैं.. 
तुम्हारे शहर को तारासा मैंने।
सड़कों गलियों को सवारा मैंने।।
अपने ही फुटपाथों में कुचलने को मसहूर हूं मैं। 
हां जी हां मजदूर हूं मैं..

जलते सूरज में तप्ती राह हूं।
नहीं विकल्प कोई मैं तो कोहिनूर हूं।।

सारा अम्बर ही मेरा छत है
इस धरा पर हरी घास मेरा बिस्तर है।
ये मेरे शौक नहीं बस रहने को मजबूर हूं मैं।
हां जी हां मजदूर हूं मैं...

चार पैसों के लिए आता हूं शहर
ठहरता ही नही बस करता हूँ सफर।
कभी चोर तो कभी बेकसूर हूं मैं।
हां जी हां मजदूर हूं मैं...

धरती चीरुं तो हरा इस धरा को करदूँ।
ज़िद पे आऊं तो पर्वतों को खाई करदूँ।।
समृद्धि हो देश की इसी में गमगीन हूं मैं।
हां जी हां मजदूर हूं मैं...

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