शुक्रवार, 8 मई 2020

प्रकृति

बहुत किया तू ताण्डव मानव,
अब ताण्डव प्रकृति को देख।
मौसम बदले खेती सूखे,
मिटे तेरो मस्तक को रेख।।

ईश्वर ने था स्वयं बनाया, 
धर लिया तू राक्षस को भेष।
घुट घुट जीले नरक जवानी,
बचा तेरा जो जीवन शेष।।

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