इस दुखी संसार में सब सुखी हों राम।
लॉक में जाये जनता सबका बनता काम।।
घर में रहते हैं सभी खाएं सब मिल बैठ।
राजा करती चाकरी जनता करती ऐठ।।
पशु पक्षि है मौज में करे न कोई हलाल।
प्रकृति बदला ले रही करो न कोई सवाल।।
जल निर्मल है भया नभ भी हो गया साफ।
फेर करो जो गंदगी कबहुं करों न माफ।।
जो दुखी हैं भूख से करो दया सब धाय।
यह दसा हे रामजी कोहू को न आय।।
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