शनिवार, 4 अप्रैल 2015

(क) सुभाषित श्लोक​

1.
काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम। 
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा॥
भावार्थ​- बुद्धिमान व्यक्ति काव्य, शास्त्र आदि का पठन करके अपना मनोविनोद करते हुए समय को व्यतीत करता है और मूर्ख सोकर या कलह करके समय बिताता है।
2.
कुलस्यार्थे त्यजेदेकम ग्राम्स्यार्थे कुलंज्येत्। 
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥
भावार्थ​- कुटुम्ब के लिए स्वयं के स्वार्थ का त्याग करना चाहिए, गाँव के लिए कुटुम्ब का त्याग करना चाहिए, देश के लिए गाँव का त्याग करना चाहिए और आत्मा के लिए समस्त वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।
3.
किम कुलेन विशालेन विद्याहीनस्य देहिन:। 
अकुलीनोऽपि विद्यावान देवैरपि सुपूज्यते॥
भावार्थ​- अच्छे कुल मे जन्मा हुआ व्यक्ति अगर ज्ञानी न हो, तो उसके अच्छे कुल का क्या फायदा। ज्ञानी व्यक्ति अगर कुलीन न हो, तो भी इश्वर भी उसकी पूजा करते है।
4.
कस्यचित किमपि नो हरणीयं मर्मवाक्यमपि नोच्चरणीयम। 
श्रीपते: पद्युगं स्मरणीयं लीलया भवजलं तरणीयम्॥
भावार्थ​- दूसरों की कोई वस्तु कभी चुरानी नहीं चाहिए। दूसरे के मर्म स्थान पे आघात हो ऐसा कभी बोलना नहीं चाहिए। श्री विष्णु के चरण का स्मरण करना चाहिए। ऐसा करने से भवसागर पार करना सरल हो जाता है।
5.
क्वचिद्भूमौ शय्या क्वचिदपि पर्यङ्कशयनं, 
क्वचिच्छाकाहारी क्वचिदपि च शाल्योदनरुचि:। 
क्वचित्कन्थाधारी क्वचिदपि च दिव्याम्बरधरो, 
मनस्वी कार्यार्थी न गणयति दु:खं न च सुखम ॥
भावार्थ- कभी धरती पे सोना कभी पलंग पे। कभी सब्जी खाना कभी रोटी–चावल। कभी फटे हुए कपडे पहनना कभी बहुत कीमती कपडे पहनना। जो व्यक्ति अपने कार्य में सर्वथा मग्न हो, उन्हें ऐसी बाहरी सुख दु:खो से कोई मतलब नहीं होता।
6.
कर्पूरधूलिरचितालवाल: कस्तूरिकापंकनिमग्ननाल:। 
गंगाजलै: सिक्तसमूलवाल: स्वीयं गुणं मुञ्चति किं पलाण्डु:॥
भावार्थ- प्याज के पौधे के लिए आप कपूर की क्यारी बनाओे, कस्तूरी का उपयोग मिट्टी की जगह करो, अथवा उसके जड़ पे गंगा जल डालो वह अपनी दुर्गंध नहीं छोडेगा । उसी प्रकार दुश्ट मनुष्य का स्वभाव बदलना बहुत कठिन है ।
7.
कलहान्तनि हम्र्याणि कुवाक्यानां च सौदम । 
कुराजान्तानि राष्ट्राणि कुकर्मांन्तम यशो नॄणाम ॥
भावार्थ- झगडों से परिवार टूट जाते हैं। गलत शब्द प्रयोग करने से दोस्त टूटते हैं। बुरे शासकों के कारण राष्ट्र का नाश होता है। बुरे काम करने से यश दूर भागता है।
8.
कालो वा कारणं राज्ञो राजा वा कालकारणम । 
इति ते संशयो मा भूत राजा कालस्य कारणं ॥ 
भावार्थ- काल राजा का कारण है, कि राजा काल का इसमें थोडी भी दुविधा नहीं कि राजा ही काल का कारण है ।
9.
कन्या वरयते रुपं माता वित्तं पिता श्रुतम । 
बान्धवा: कुलमिच्छन्ति मिष्टान्नमितरेजना: ॥ 
भावार्थ- विवाह के समय कन्या सुन्दर पती चाहती है । उसकी माता सधन जमाइ चाहती है । उसके पिता ज्ञानी जमाइ चाहते है । तथा उसके बन्धु अच्छे परिवार से नाता जोड़ना चाहते हैं। परन्तु बाकी सभी लोग केवल अच्छा खाना चाहते हैं।

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