1
दुर्लभं त्रयमेवैतत देवानुग्रहहेतुकम ।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरूषसश्रय:
॥
भावार्थ- मनुष्य जन्म, मुक्ती
की इच्छा तथा महापुरूषोंका सहवास यह तीन चीजें परमेश्वर की कॄपा पर निर्भर रहते है
।
2
दिवसेनैव तत कुर्याद येन रात्रौ सुखं वसेत ।
यावज्जीवं च
तत्कुर्याद येन प्रेत्य सुखं वसेत ॥
भावार्थ- दिनभर ऐसा काम करो
जिससे रात में चैन की नींद आ सके । वैसे ही जीवन भर ऐसा काम करो जिससे मॄत्यू
पश्चात सुख मिले । अर्थात सद्गती प्राप्त हो।
3
दानं भोगो नाश: तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य ।
यो न ददाति न
भुङ्क्ते तस्य तॄतीया गतिर्भवति ॥
भावार्थ- धन खर्च होने
के तीन मार्ग है- दान, उपभोग तथा नाश जो व्यक्ति दान नही करता तथा उसका उपभोगभी नहीं
लेता उसका धन नाश पाता है ।
04
दीर्घा वै जाग्रतो रात्रि: दीर्घं श्रान्तस्य योजनम ।
दीर्घो
बालानां संसार: सद्धर्मम अविजानताम ॥
भावार्थ- रातभर
जागनेवाले को रात बहुत लंबी मालूम होती है । जो चलकर थका है, उसे एक योजन चार मील)
अंतर भी दूर लगता है । सद्धर्म का जिन्हे ज्ञान नही है उन्हे जिन्दगी दीर्घ लगती
है ।
05
देहीति वचनद्वारा देहस्था पञ्च देवता: ।
तत्क्षणादेव लीयन्ते धर्ही
श्री: कान्र्ति कीर्तय: ॥
भावार्थ- “देह” इस शब्द
के साथ, याचना करने से देह में स्थित पांच देवता बुद्धी, लज्जा, लक्ष्मी, कान्ति, और
कीर्ति उसी क्षण देह छोडकर जाती है ।
06
द्वयक्षरस तु भवेत मृत्युर, त्रयक्षरमं ब्राह्म शाश्वतम ।
मम इति च
भवेत मृत्युर, न मम इति च शाश्वतम ॥
भावार्थ- मृत्यु यह दो अक्षरों
का शब्द है तथा ब्राह्म जो शाश्वत है वह तीन अक्षरों का है । मम यह भी मृत्यु के समान
ही दो अक्षरों का शब्द है तथा नमम यह शाश्वत ब्राह्म की तरह तीन अक्षरों का शब्द है
।
07
दूर्जन: परिहर्तव्यो विद्यया लङ्कॄतोऽपि सन ।
मणिना भूषित: सर्प:
किमसौ न भयङ्कर: ॥
दूर्जन! चाहे वह विद्या से विभूषित
क्यूँ न हो, उसे दूर रखना चाहिए । मणि से आभूषित “साँप” क्या भयानक नहीं होता।
08
दातव्यं भोक्तव्यं धन विषये संचयो न कर्तव्य:।
पश्येह मधु करीणां संचितार्थ
हरन्त्यन्ये॥
भावार्थ- दान कीजिए या उपभोग
लीजिए, धन का संचय न करें देखिए, मधुमक्खी का संचय कोई और ले जाता है ।
09
दुर्जनेन समं सख्यं प्रीतिं चापि न कारयेत्।
उष्णो दहति चांगारः शीतः
कृष्णायते करम्॥
दुर्जन, जो कि कोयले के समान होते
हैं, से प्रीति कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि कोयला यदि गरम हो तो जला देता है और शीतल
होने पर भी अंग को काला कर देता है।
10
दुर्लभं त्रयमेवैतत देवानुग्रह हेतुकम ।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं
महापुरूषसश्रय: ॥
मनुष्य जन्म, मुक्ती की इच्छा
तथा महापुरूषों का संग यह तीन चीजें परमेश्वर की कॄपा पर निर्भर रहते है ।
11
दानं भोगो नाश: तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य ।
यो न ददाति न
भुङ्क्ते तस्य तॄतीया गतिर्भवति ॥
धन खर्च होने के तीन मार्ग है
। दान, उपभोग तथा नाश । जो व्यक्ति दान नही करता तथा उसका उपभोगभी नही लेता उसका
धन नाश पाता है ।
12
दीर्घा वै जाग्रतो रात्रि: दीर्घं श्रान्तस्य योजनम ।
दीर्घो
बालानां संसार: सद्धर्मम अविजानताम ॥
रातभर जागनेवाले को रात बहुत
लंबी मालूम होती है । जो चलकर थका है, उसे एक योजन चार मील अंतर भी दूर लगता है । सद्धर्म
का जिन्हे ज्ञान नही है उन्हे जिन्दगी दीर्घ लगती है ।
13
देहीति वचनद्वारा देहस्था पञ्च देवता: ।
तत्क्षणादेव लीयन्ते
र्धीह्र्रीश्र्रीकान्र्तिकीर्तय: ॥
‘देऽ इस शब्द के साथ, याचना
करने से देहमें स्थित पांच देवता बुद्धी, लज्जा, लक्ष्मी, कान्ति, और कीर्ति उसी
क्षण देह छोडकर जाती है ।
14
दूर्जन: परिहर्तव्यो विद्ययाऽलङ्कॄतोऽपि सन ।
मणिना भूषित: सर्प:
किमसौ न भयङ्कर: ॥
दूर्जन, चाहे वह विद्यासे
विभूषित क्यू न हो, उसे दूर रखना चाहिए । मणि से आभूषित साँप, क्या भयानक नहीं
होता ।
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