सोमवार, 17 सितंबर 2018

सामाजिक उथल पुथल

एक समय था जब मनुष्य के पास न तो मोबाइल था और न ही देश दुनिया की कोई खबर ही थी। कौन क्या कर रहा है, कौन किसके हित-अहित की सोच रहा है इसकी झनक तब के लोगों में नहीं थी। उस दौर में मनुष्य का जीवन व्यवहारिक व संगठित था, एक व्यक्ति दूसरे की मदद करता था दुंखों के समय कंधे से कंधा मिलाकर चलता था। एक सबल दूसरे निर्बल का सहारा बनता था।

परन्तु मैं यही भी नहीं कह रहा की तब के समय में द्वेष, बैर, पाखंड, मिथ्या भाषण, ऊंच-नीच, छुआ-छूत जैसा असामाजिक कर्म नहीं था। ये सारी चीजें तब निम्न स्तर में था पर आज इसकी Categorie बढ़ गई है। पहले जातियों में भेद भाव था अब पंथों में भेद दिख रहा है। अब कुछ लोग स्वजातीय को भारत का मूलनिवासी सिद्ध करने में लगा है। मूलनिवासी क्या है, कौन है? इसपर किसने जुर्म किये, कितनी यातनाएं दी गई। यह सब अब नाटकों, आलेखों और जनसभाओं के द्वारा स्वजातीय को समझाया जा रहा है।

यह भी बताया जा रहा है कि यूरेशिया से आकर आर्यों ने मूलनिवासियों को अपना गुलाम बना लिया और स्वयं वे भगवान बनकर पूजे जाने लगे। पौराणिक कथाओं में इन उपद्रवी आर्यों ने हम मूलनिवासियों को राक्षस, असुर, दैत्य नाम से संबोधित किया है। वे स्वयं को ऊंचा और भारत के मूलनिवासियों को नीची जाति का बनाकर अपमानित किया। मूलनिवासी अपने ही भूमि पर थूक नहीं सकता था, थूकने के लिए वह अपने गले में हंडी लटकाकर और अपने पैरों के निशान मिटाने के लिए अपने कमर के पीछे झाड़ू बांधकर चलते थे।

इसप्रकार के कई अपवाद स्वरूप कहानियों को गढ़कर कुछ राजनीतिक दलों ने स्वजनों को बहकाने में सफल भी रहे हैं। इस कार्य के लिए आज के आधुनिक तकनीक का उपयोग कर, जिसे हम social media के नाम से भी जानते हैं का उपयोग भी धड़ल्ले से किया जा रहा है साथ ही रंगमंच में नाटकीय ढंग से रचकर यह अपवादित सूचनाओं को जन-जन तक पहुंचाया जा रहा है।

हमारे भारत की संस्कृति अनादि तथा वैद्यकीय है इसी कारण इसे सनातनीय कहा गया। परमात्मा ने प्रकृति और पुरूष के रूप में स्वयं अवतार धारण किया मनुष्य सहित अनेक जीवों के लिए उत्तम से उत्तम व्यवस्थाएं की हैं। रही बात जाति निर्माण की तो प्रत्येक जीवों में यहां तक कि वृक्षों में भी जातियां बनाई हैं। यदि उन्होंने आम का वृक्ष बनाया तो वे एक ही बनाते जिसका फल मीठा और बड़ा होता पर नहीं आम के सहित अनेक वृक्षों में अलग अलग जातियां बनाई हैं। कोई आम बड़ा है तो कोई छोटा, कोई आम मीठा है तो कोई खट्टा, कोई आम पीले रंग का तो कोई लाल या हरे रंग का होता है।

इसी प्रकार पक्षियों में भी देखिए हम तोते को अपने घर में पालते हैं इनमें भी कई जातियां हैं। बंदरों में भी अनेक जातियां हैं, गायों में भी अनेक जातियां हैं और इनमें सम्मान या प्यार उन्हें ही मिलता है जिसमे कोई अच्छा गुण हो, जो सुंदर हो और इसी आधार पर उनका नाम

शनिवार, 15 सितंबर 2018

कलियुग के गुण और दोष

कलेर्दोषेनिवेश्चैव शृणु चैकं महागुणं |
यदल्पेन तु कालेन सिद्धि गच्छति मानवाः || (1)
त्रेतायां वार्षिको धर्मो द्वापरे मासिकः स्मृतः |
यथा क्लेशं वरन प्राश्स्तहा प्राप्यते कलौ ||  (2)
दुगत्रयेण तावन्तः सिद्धि गच्छन्ति पार्थिव |
यावन्तः सिद्धिमाद्यन्ति कलौ हरिहर्व्रताः || (3)

अब कलियुग की प्रवृत्ति सुनो | कलियुग में तमोगुण से व्याकुल इन्द्रियों वाले मनुष्य माया, असूया (दोष दृष्टी) तथा तपस्वी महात्माओं की हत्या भी करते हैं | कलि में मन और इन्द्रियों को मथ डालने वाला राग प्रकट होता है | सदा भुखमरी का भय सताता रहता है, भयंकर अनावृष्टि का भय भी प्राप्त होता है | सब देशों में नाना प्रकार के उलट फेर होते रहते हैं | सदा अधर्म सेवन करने के कारण मनुष्यों के लिए वेद का प्रमाण मान्य नहीं रह जाता |

प्रायः लोग अधार्मिक, अनाचारी, अत्यंत क्रोधी और तेजहीन होते हैं | लोभ के वशीभूत हो कर झूठ बोलते हैं, उनमें अधिकांश नारियों का सा स्वभाव आ जाता है, उनकी संतान दुष्ट होती हैं | ब्राह्मणों के दूषित यज्ञ, दोषयुक्त स्वाध्याय, दूषित आचरण तथा असत शास्त्रों के सेवन रूप कर्म दोष  से समस्त प्रजा का विनाश होता है | क्षत्रिय और ब्राह्मण नाश को प्राप्त होते हैं और वैश्य तथा शूद्रों की वृद्धि होती है | शूद्र लोग ब्राह्मणों के साथ एक  आसन पर सोते, बैठते और भोजन भी करते हैं | शूद्र ब्राह्मणों के आचरण अपनाते हैं और ब्राह्मण शूद्र के सामान आचरण करते हैं | चोर राजाओं की वृत्ति में स्थित होते हैं और राजा लोग चोर के सामान वर्ताव करते हैं |

पतिव्रता स्त्रियाँ कम होने लगती हैं और कुलटाओं की संख्या बढती है | कलियुग में भूमि प्रायः थोडा फल देने वाली होती है, कही कहीं वह अधिक उपजाऊ होती है | राजा लोग निडर होकर पाप करते हैं, वे रक्षक नहीं वरन प्रजा की संपत्ति हड़प लेने वाले होते हैं | कलियुग में प्रायः क्षत्रियेत्तर जाति के लोग राजा होते हैं | ब्राह्मण शूद्र की वृत्ति से जीविका चलने वाले होंगे | शूद्र ब्राह्मणों से अभिवन्दित हो कर स्वयं वाद-विवाद करने वाले होंगे | वे द्विजों को देख कर भी अपने आसन से उठ कर खड़े न होंगे |

द्विजों के सामने भी शूद्र ऊँचे आसन पर बैठे रहेंगे; यह बात जानकार भी राजा उन्हें दंड नहीं देगा | देखो, काल का कैसा प्रभाव है | अल्प विद्या और अल्प भाग्य वाले ब्राह्मण सुन्दर सुन्दर फूलों तथा अन्य प्रकार के अलंकारों से शूद्रों की अर्चना किया करेंगे | कलियुग के ब्राह्मण पाखंडियों के न लेने योग्य दूषित दान को भी ग्रहण करते हैं और उसके कारण दुस्तर रौरव नरक में पड़ते हैं | करोड़ों द्विज कलिकाल में तप और यज्ञ का फल बेचने वाले तथा अन्यायी होते हैं |  मनुष्यों के संतानों में पुत्र थोड़े और कन्यायें अधिक होती हैं |

कलियुग में मनुष्य वेद वाक्यों तथा वेदार्थों की निंदा करते हैं | शूद्रों ने जिसे स्वयं रच लिया हो, वही शास्त्र एवं प्रमाण माना जायेगा | हिंसक जीव प्रबल होंगे और गौवंश का क्षय होगा | दान आदि कोई भी धर्म अपने शुद्ध रूप में नहीं पालित होगा | साधू पुरुषों का अनेक प्रकार से विनाश होगा  | राजा लोग प्रजा के रक्षक न होंगे | कलियुग का अंतिम भाग उपस्थित होने पर प्रत्येक जनपद के लोग अन्न का व्यापार करेंगे, ब्राह्मण वेद बेचने वाले होंगे, स्त्रियाँ व्यभिचार से अर्थोपार्जन करेंगी | घरों में स्त्रियों की प्रधानता होगी |

वे अपवित्र कपडे पहनने वाली तथा कर्कशा होंगी | बहुत अधिक भोजन में लिप्त हो कर कृत्या की भाँती प्रतीत होंगी | कलियुग में प्रायः सब लोग वाणिज्य वृत्ति करने वाले होंगे | इंद्र छिट-पुट वर्षा करने वाले होंगे | मनुष्य दुराचार सेवन आदि व्यर्थ के पाखंडों से घिरे होंगे और सब लोग एक दूसरे से याचना करेंगे | उस समय लोगों को पाप करने में तनिक भी शंका नहीं होगी | जब कलियुग के संहार का समय आएगा उस समय मनुष्य पराया धन हडपने वाले, परस्त्रियों का सतीत्व नष्ट करने वाले तथा पंद्रह वर्ष की आयु वाले होंगे | चोर के घर भी चोरी करने वाले तथा लुटेरे के घर में भी लूट मार करने वाले होंगे |

ज्ञान और कर्म दोनों का अभाव हो जाने से सब लोग उद्यम करना छोड़ देंगे | उस समय कीड़े, चूहे और सर्प मनुष्य को डसेंगे |  वर्ण और आश्रम धर्म के विरोधी जो अन्य पाखण्ड सुने जाते हैं, वे सब उस समय प्रकट होंगे और उनकी वृद्धि होगी | कलियुग में स्त्री और पुत्र से दुःख, शरीर का संहार, सदा रोगी रहना तथा पाप करने में आग्रह रखना आदि दोष क्रमशः बढ़ते ही जायेंगे |

राजन ! यद्यपि कलियुग समस्त दोषों का भण्डार है, तथापि उसमें एक महान गुण भी है, उसे सुनो – कलिकाल में थोड़े ही समय साधन करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त हो जाते हैं |

(1) सतयुग, त्रेता और द्वापर – इन तीनों युगों के लोग ऐसा कहते हैं कि जो मनुष्य कलियुग में श्रद्धा परायण होकर वेदों, स्मृतियों और पुराणों में बताये गए धर्म का अनुष्ठान करते हैं, वे धन्य हैं | त्रेता में एक वर्ष तक तथा द्वापर में एक मास तक क्लेशसहनपूर्वक धर्मानुष्ठान करने वाले बुद्दिमान पुरुष को जो फल प्राप्त होता है वह  कलियुग में एक दिन के अनुष्ठान  से मिल जाता है | राजन ! कलियुग में भगवान् विष्णु और शिव की नियमपूर्वक उपासना करने से जितने मनुष्य  सिद्धि को प्राप्त होते हैं, उतने अन्य युगों में तीन युगों में उपासना करने से प्राप्त होते हैं।

यह मिट्टी किसी को नही छोडेगी

ऋषिवर - हॆ वत्स एक राजा बहुत ही महत्वाकांक्षी था और उसे महल बनाने की बड़ी महत्वकांक्षा रहती थी..
उसने अनेक महलों का निर्माण करवाया..

रानी उनकी इस इच्छा से बड़ी व्यथित रहती थी की पता नही क्या करेंगे इतने महल बनवाकर..
एक दिन राजा नदी के उस पार एक महात्मा जी के आश्रम के वहाँ से गुजर रहे थे तो वहाँ एक संत की समाधि थी और सैनिकों से राजा को सुचना मिली की संत के पास कोई अनमोल खजाना था और उसकी सुचना उन्होंने किसी को नदी पर अंतिम समय मे उसकी जानकारी एक पत्थर पर खुदवाकर अपने साथ ज़मीन मे गढ़वा दिया और कहा की जिसे भी वो खजाना चाहिये..

उसे अपने स्वयं के हाथों से अकेले ही इस समाधि से चौरासी (84) हाथ नीचे सूचना पड़ी है..

निकाल ले और अनमोल खजाना प्राप्त कर लेंवे और ध्यान रखे उसे बिना कुछ खाये पिये खोदना है और बिना किसी की सहायता के खोदना है अन्यथा सारी मेहनत व्यर्थ चली जायेगी..

राजा अगले दिन अकेले ही आया और अपने हाथों से खोदने लगा और बड़ी मेहनत के बाद उसे वो शिलालेख मिला और उन शब्दों को जब राजा ने पढ़ा तो उसके होश उड़ गये और सारी अकल ठिकाने आ गई..

शिष्य - क्षमा हॆ देव ! पर ऐसा क्या लिखा था ?
ऋषिवर - उस पर लिखा था हॆ राहगीर संसार के सबसे भूखे प्राणी शायद तुम ही हो और आज मुझे तुम्हारी इस दशा पर बड़ी हँसी आ रही है तुम कितने भी धन-दौलत, महल बना लो पर तुम्हारा अंतिम महल यही है एक दिन तुम्हे इसी मिट्टी मे मिलना है..

सावधान राहगीर,जब तक तुम मिट्टी के ऊपर हो तब तक आगे की यात्रा के लिये तुम कुछ जतन कर लेना क्योंकि जब मिट्टी तुम्हारे ऊपर आयेगी तो फिर तुम कुछ भी न कर पाओगे यदि तुमने आगे की यात्रा के लिये कुछ जतन न किया तो अच्छी तरह से ध्यान रखना की जैसै ये चौरासी हाथ का कुआं तुमने अकेले खोदा है..

बस वैसे ही आगे की चौरासी लाख योनियों मे तुम्हे अकेले ही भटकना है और हॆ राहगीर ये कभी न भुलना की "तुझे भी एक दिन इसी मिट्टी मे मिलना है बस तरीका अलग-अलग हो सकता है..

फिर राजा जैसै तैसे कर के उस कुएँ से बाहर आया और अपने राजमहल गया पर उस शिलालेख के उन शब्दों ने उसे झकझोर के रख दिया और सारे महल जनता को दे दिये और " अंतिम घर " की तैयारियों मे जुट गया..

हॆ वत्स एक बात हमेशा याद रखना की इस मिट्टी ने जब रावण जैसै सत्ताधारियों को नही बख्शा तो फिर साधारण मानव क्या चीज है इसलिये ये हमेशा याद रखना की मुझे भी एक दिन इसी मिट्टी मे मिलना है क्योंकि ये मिट्टी किसी को नही छोड़ने वाली है.........!!

सोमवार, 10 सितंबर 2018

विप्र गीत

तिलक जनेऊ शिखा धार लो।
ब्राह्मण हित में प्राण वार लो।।

भ्रात भ्रात की  यही रीत हो।
विप्र प्रथम हो विप्र मीत हो।।

ब्राह्मण हो ब्राह्मण की आशा।
अपनापन हो  मिटे  निराशा।।

भ्राता  भगिनी  एक  राग दो।
दर्द समझ लो अहम् त्याग दो।।

ब्राह्मण हो ब्राह्मण को पा लो।
जग छोड़ो परिवार बचा लो।।

शक्ति स्वयं की पहचानो ।
एक-दूजे का कहना मानो।।

पहले मात-पिता की सेवा।
यदि  पाना हो  तुमको मेवा।।

फिर भ्राता को भ्राता कहना।
प्रेम  समर्पित  करते रहना।।

हर ब्राह्मण को मानो भ्राता।
कहते हैं अब यही विधाता।।

हो जाओ  सब  ब्राह्मणवादी।
ब्राह्मण की ब्राह्मण से शादी।।

यदि थोड़ा भी हित का मन है।
यथाशक्ति  दो  जो निर्धन है।।

श्री परशुराम को मन में रख लो।
निज उन्नति के फल को चख लो।।

जय ब्राह्मण एकता !!!
(विप्र समाज हित में समर्पित)

अपराध

मन्दिर में पैसे फेंकना बहुत-बड़ा अपराध है ।

अक्सर हमने बहुत बार देखा है कि लोग मन्दिर मे अपनी जेब से
1,
2,
5 का सिक्का या कोई-भी नोट निकाल कर भगवान के सामने फेंकते है । फिर हाथ जोडकर प्रणाम करते है एवं मनोकामना भगवान से माँगते है ।

कैसी मूर्खता है ❗
यह लोगो की:-
कोई आपके सामने पैसे फेंककर चला जाये तो क्या आपको अच्छा लगेगा ❓
नही लगेगा ❗

आप उस व्यक्ति को बुलाकर कहोगे__""भिखारी समझा है क्या""

तो सोचिये भगवान को कैसी-फीलिंग आती होगी, जब कोई उनके सामने पैसे
फेंकता है ?

अब जो यह कहे कि भैया 【पत्थर की मूर्ति】 मे कैसी फीलिंग, तो उनका मन्दिर जाना बेकार है ।

10 रूपये चढ़ाकर 10 करोड़ कि कामना करते है ।

भगवान के सामने शर्त रखते है कि है भगवान मेरे बेटे कि नौकरी लगने के बाद मंदिर मे भंडारा करवाऊंगा ।

मेरा ये संकट टाल दो,तो इतने रूपये दान करूंगा ।

पहले कुछ नही करेंगे, काम होने के बाद ही करेंगे ।

हे भगवान, मेरा ये काम हो जाये मै आपको मानना शुरू कर दूँगा ।

क्यो भाई, भगवान को क्या जरूरत पड़ी है कि, वो तुम्हे अपने होने का प्रमाण दें ❓

ऐसे, लोभी-लालची व्यक्तियों को समझना चाहिए कि उन्हें तुम क्या दे दोगे ?
जो सम्पूर्ण-विश्व को
पाल रहा है ⁉

दाता ! एक-राम, भिखारी सारी दुनिया ‼
""भगवान को आपका पैसा नही चाहिये,
उन्हें तो सिर्फ आपकी सच्ची-भावना और प्रेम चाहिये ।""

उनके सामने जब भी जाये तो अपने 【पद, पैसे, ज्ञान का अहंकार】 त्याग कर [दीन-हीन】 बनकर जाये ।
क्योंकि आपके पास जो कुछ भी है,यह {सब उन्ही-का}तो है ।

एक बार इस बात पर विचार अवश्य करिए ⁉

तेरा दर ढूँढते-ढूँढते जिन्दगी की शाम हो गयी ❗
और
तेरा दर मिला तो जिन्दगी ही तेरे नाम हो गई ‼