तिलक जनेऊ शिखा धार लो।
ब्राह्मण हित में प्राण वार लो।।
भ्रात भ्रात की यही रीत हो।
विप्र प्रथम हो विप्र मीत हो।।
ब्राह्मण हो ब्राह्मण की आशा।
अपनापन हो मिटे निराशा।।
भ्राता भगिनी एक राग दो।
दर्द समझ लो अहम् त्याग दो।।
ब्राह्मण हो ब्राह्मण को पा लो।
जग छोड़ो परिवार बचा लो।।
शक्ति स्वयं की पहचानो ।
एक-दूजे का कहना मानो।।
पहले मात-पिता की सेवा।
यदि पाना हो तुमको मेवा।।
फिर भ्राता को भ्राता कहना।
प्रेम समर्पित करते रहना।।
हर ब्राह्मण को मानो भ्राता।
कहते हैं अब यही विधाता।।
हो जाओ सब ब्राह्मणवादी।
ब्राह्मण की ब्राह्मण से शादी।।
यदि थोड़ा भी हित का मन है।
यथाशक्ति दो जो निर्धन है।।
श्री परशुराम को मन में रख लो।
निज उन्नति के फल को चख लो।।
जय ब्राह्मण एकता !!!
(विप्र समाज हित में समर्पित)
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