एक समय था जब मनुष्य के पास न तो मोबाइल था और न ही देश दुनिया की कोई खबर ही थी। कौन क्या कर रहा है, कौन किसके हित-अहित की सोच रहा है इसकी झनक तब के लोगों में नहीं थी। उस दौर में मनुष्य का जीवन व्यवहारिक व संगठित था, एक व्यक्ति दूसरे की मदद करता था दुंखों के समय कंधे से कंधा मिलाकर चलता था। एक सबल दूसरे निर्बल का सहारा बनता था।
परन्तु मैं यही भी नहीं कह रहा की तब के समय में द्वेष, बैर, पाखंड, मिथ्या भाषण, ऊंच-नीच, छुआ-छूत जैसा असामाजिक कर्म नहीं था। ये सारी चीजें तब निम्न स्तर में था पर आज इसकी Categorie बढ़ गई है। पहले जातियों में भेद भाव था अब पंथों में भेद दिख रहा है। अब कुछ लोग स्वजातीय को भारत का मूलनिवासी सिद्ध करने में लगा है। मूलनिवासी क्या है, कौन है? इसपर किसने जुर्म किये, कितनी यातनाएं दी गई। यह सब अब नाटकों, आलेखों और जनसभाओं के द्वारा स्वजातीय को समझाया जा रहा है।
यह भी बताया जा रहा है कि यूरेशिया से आकर आर्यों ने मूलनिवासियों को अपना गुलाम बना लिया और स्वयं वे भगवान बनकर पूजे जाने लगे। पौराणिक कथाओं में इन उपद्रवी आर्यों ने हम मूलनिवासियों को राक्षस, असुर, दैत्य नाम से संबोधित किया है। वे स्वयं को ऊंचा और भारत के मूलनिवासियों को नीची जाति का बनाकर अपमानित किया। मूलनिवासी अपने ही भूमि पर थूक नहीं सकता था, थूकने के लिए वह अपने गले में हंडी लटकाकर और अपने पैरों के निशान मिटाने के लिए अपने कमर के पीछे झाड़ू बांधकर चलते थे।
इसप्रकार के कई अपवाद स्वरूप कहानियों को गढ़कर कुछ राजनीतिक दलों ने स्वजनों को बहकाने में सफल भी रहे हैं। इस कार्य के लिए आज के आधुनिक तकनीक का उपयोग कर, जिसे हम social media के नाम से भी जानते हैं का उपयोग भी धड़ल्ले से किया जा रहा है साथ ही रंगमंच में नाटकीय ढंग से रचकर यह अपवादित सूचनाओं को जन-जन तक पहुंचाया जा रहा है।
हमारे भारत की संस्कृति अनादि तथा वैद्यकीय है इसी कारण इसे सनातनीय कहा गया। परमात्मा ने प्रकृति और पुरूष के रूप में स्वयं अवतार धारण किया मनुष्य सहित अनेक जीवों के लिए उत्तम से उत्तम व्यवस्थाएं की हैं। रही बात जाति निर्माण की तो प्रत्येक जीवों में यहां तक कि वृक्षों में भी जातियां बनाई हैं। यदि उन्होंने आम का वृक्ष बनाया तो वे एक ही बनाते जिसका फल मीठा और बड़ा होता पर नहीं आम के सहित अनेक वृक्षों में अलग अलग जातियां बनाई हैं। कोई आम बड़ा है तो कोई छोटा, कोई आम मीठा है तो कोई खट्टा, कोई आम पीले रंग का तो कोई लाल या हरे रंग का होता है।
इसी प्रकार पक्षियों में भी देखिए हम तोते को अपने घर में पालते हैं इनमें भी कई जातियां हैं। बंदरों में भी अनेक जातियां हैं, गायों में भी अनेक जातियां हैं और इनमें सम्मान या प्यार उन्हें ही मिलता है जिसमे कोई अच्छा गुण हो, जो सुंदर हो और इसी आधार पर उनका नाम
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