शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

पूजा का अर्थ क्या है?


पूजा शब्द की की उत्पत्ति पूज् के साथ ल्युट् प्रत्यय लगने से हुआ हैजिसका अर्थ है आराधना करना, अर्चना करना, सादर स्वागत करना, सम्मान करना, श्रद्धापूर्वक भेंट चढा़ना। सगुणोपासना में पूजा का बहुत महत्व कहा गया है। पूजा करने से आश्चर्य चकित कर देने वाले चमत्कारिक परिणामों से पूरा धार्मिक ग्रंथ भरा पड़ा है। इस प्रकार वैदिक काल से ही पूजन का प्रचलन रहा है जिसमें इन्द्र​, वरुण​, अग्नि, सूर्य​, रुद्र​, आदि देवों की पूजा होती रही है और इनसे अद्भुत परिणाम प्राप्त होते रहे हैं।प्राचीन परंपरा के अनुसार हमें देवार्चन की दो विधियां प्राप्त होती हैं। १. योग २. पूजा।

  1. योग का दूसरा नाम यज्ञ है। अग्निहोत्र द्वारा अर्चन करने का दूसरा नाम याग या यज्ञ है। याग (यज्ञ​) अनेक लोगों की सहायता से सम्पन्न होता है। इसको सम्पन्न करने के लिए एक क्रमबद्ध मंत्र​-संग्रह होता है जिसकी सहायता से विधिपूर्वक याग सम्मपन्न किए जाते हैं। याग सकाम भी होते है और निराकार भी होते हैं सकाम एवं निष्काम याग या यज्ञ के सम्पन्न करने की क्रिया विधि भी अलग​-अलग होता है।
  2. शास्त्र विधिसम्मत पदार्थों को लेकर देवताओं की पूजा-अर्चना करना ही दूसरी विधी है। पूजा पूजन सामग्री (पत्र​-पुष्प​-जल​-नैवेद्य​-अगर​-धूप​-कपूर आदि) की सहायता से सम्पन्न होता है। इन सामग्रीयों को अपने आराध्यदेव को अर्पित कर पूजा करने वाला उन्हें प्रसन्न करने का उपाय करता है उसका एवं समाज का कल्याण हो सके। पूजा पंचोपचार से लेकर सर्वांग उपचार तक क​ई विधियों से सम्पन्न की जाती है। जैसे_ १.वैदिक विधी से २. पौराणिक विधि से। वैदिक एवं पौराणिक विधि से पूजा करने में मंत्र भिन्न होते हैं।

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