भोजन के समय खाने व पीने के पात्र अलग-अलग होने चाहिए।
सोना, चाँदी, काँसा, पीतल, लोहा, काँच, पत्थर अथवा मिट्टी के बर्तनों में भोजन करने की पद्धति प्रचलित है। इसमें सुवर्णपात्र सर्वोत्तम तथा मिट्टी के पात्र हीनतम माने गये हैं। सोने के बाद चाँदी, काँसा, पीतल, लोहा और काँच के बर्तन क्रमशः हीन गुणवाले होते हैं।
एल्यूमीनियम के बर्तनों का उपयोग कदापि न करें। इससे कैंसर आदि रोग होने का खतरा होता है।
रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)
चतुर्मास के दिनों में ताँबे व काँसे के पात्रों का उपयोग न करके अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करना चाहिए।
(स्कन्द पुराण)
चतुर्मास में पलाश के पत्तों की पत्तल पर भोजन करना पापनाशक है।
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