सोमवार, 21 जुलाई 2014

सोमवती अमावस्याः काली चौदसः दीपावलीः एकादशी

सोमवती अमावस्या के पर्व में स्नान-दान का बड़ा महत्त्व है।
इस दिन भी मौन रहकर स्नान करने से हजार गौदान का फल होता है।
इस दिन पीपल और भगवान विष्णु का पूजन तथा उनकी 108 प्रदक्षिणा करने का विधान है। 108 में से 8 प्रदक्षिणा पीपल के वृक्ष को कच्चा सूत लपेटते हुए की जाती है। प्रदक्षिणा करते समय 108 फल पृथक रखे जाते हैं। बाद में वे भगवान का भजन करने वाले ब्राह्मणों या ब्राह्मणियों में वितरित कर दिये जाते हैं। ऐसा करने से संतान चिरंजीवी होती है।
इस दिन तुलसी की 108 परिक्रमा करने से दरिद्रता मिटती है।

काली चौदसः नारकीय यातनाओं से रक्षा

नरक चतुर्दशी (काली चौदस) के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल-मालिश (तैलाभ्यंग) करके स्नान करने का विधान है। 'सनत्कुमार संहिता' एवं 'धर्मसिंधु' ग्रंथ के अनुसार इससे नारकीय यातनाओं से रक्षा होती है।
काली चौदस और दीपावली की रात जप-तप के लिए बहुत उत्तम मुहूर्त माना गया है। नरक चतुर्दशी की रात्रि में मंत्रजप करने से मंत्र सिद्ध होता है।
इस रात्रि में सरसों के तेल अथवा घी के दीये से काजल बनाना चाहिए। इस काजल को आँखों में आँजने से किसी की बुरी नजर नहीं लगती तथा आँखों का तेज बढ़ता है।

दीपावलीः लक्ष्मीप्राप्ति की साधना

दीपावली के दिन घर के मुख्य दरवाजे के दायीं और बायीं ओर गेहूँ की छोटी-छोटी ढेरी लगाकर उस पर दो दीपक जला दें। हो सके तो वे रात भर जलते रहें, इससे आपके घर में सुख-सम्पत्ति की वृद्धि होगी।
मिट्टी के कोरे दीयों में कभी भी तेल-घी नहीं डालना चाहिए। दीये 6 घंटे पानी में भिगोकर रखें, फिर इस्तेमाल करें। नासमझ लोग कोरे दीयों में घी डालकर बिगाड़ करते हैं।
लक्ष्मीप्राप्ति की साधना का एक अत्यंत सरल और केवल तीन दिन का प्रयोगः दीपावली के दिन से तीन दिन तक अर्थात् भाईदूज तक एक स्वच्छ कमरे में अगरबत्ती या धूप (केमिकल वाली नहीं-गोबर से बनी) करके दीपक जलाकर, शरीर पर पीले वस्त्र धारण करके, ललाट पर केसर का तिलक कर, स्फटिक मोतियों से बनी माला द्वारा नित्य प्रातः काल निम्न मंत्र की मालायें जपें।
ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद् महै।
अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।।
अशोक के वृक्ष और नीम के पत्ते में रोगप्रतिकारक शक्ति होती है। प्रवेशद्वार के ऊपर नीम, आम, अशोक आदि के पत्ते को तोरण (बंदनवार) बाँधना मंगलकारी है।

एकादशीः फलाहार

'स्कन्द पुराण' के अनुसार दोनों पक्षों की एकादशी के दिन मनुष्य को ब्राह्ममुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूजा करनी चाहिए। उपवास रखकर रात्रि को भगवान के समीप कथा-कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करना चाहिए। (रात्रि 12 या 1 बजे तक जागरण योग्य है।)
जो लोग उपवास, एकभुक्त (दिन में एक समय फलाहार) अथवा शाम को तारे का दर्शन करने तक व्रत का पालन करते हैं वे धन, धर्म और मोक्ष प्राप्त करते हैं।
अनिवार्य संयोग में इस दिन उपवास न कर सके तो भी चावल तो नहीं खाना चाहिए।
एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए।
एकादशी व्रत खोलने की विधिः द्वादशी को सेवापूजा की जगह पर बैठकर भुने हुए सात चनों के चौदह टुकड़े करके अपने सिर के पीछे फेंकने चाहिए। 'मेरे सात जन्मों के शारीरिक, वाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुए' – यह भावना करके सात अंजलि जल पीना और चने के सात दाने खाकर व्रत खोलना चाहिए।
देवउठी एकादशी को भगवान श्रीविष्णु की कपूर से आरती करने पर कभी अकाल मृत्यु नहीं होती। (स्कन्द पुराण)


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