शनिवार, 19 जुलाई 2014

सनातनी काल गणना


जिस प्रकार हम एक घड़ी में निर्धारि समय को समझते हैं, बस उसी प्रकार हम अपने सनातनी काल को समझसकते हैं, जो की हमारे शास्त्रों अथवा पुराणों में वर्णित है। उसी के आधार पर यहां मैं आपको अपने सनातनी काल खण्ड को समझाने का प्रयास कर रहा हूं। हम यदी अपने ही धर्म को न जानें की उसकी विशेषता क्या है, हमारा धर्म सभी धर्मों से पुराना किस प्रकार है। सभी के मन में अनेकों प्रश्न होते हैं की हम​ सनातनी कैसे ? सनातन क्या होता है ? ये कलयुग क्या है कब से इसका प्रारंभ हुआ ? 

ऐसे सभी प्रश्नों के उत्तर देनें का प्रयास करूंगा । पहले हम यह जानते हैं कलियुग पारम्परिक भारत का चौथा युग है।महाभारत युद्ध ३१३७ ईपू में हुआ। कलियुग का आरम्भ कृष्ण के इस युद्ध के ३५ वर्ष पश्चात निधन पर हुआ। भगवान श्री कृष्ण के इस पृथ्वी से प्रस्थान के तुंरत बाद से कलि युग आरम्भ हो गया।

कलियुग की आयु सीमा- 4,32,000 वर्ष है।
द्वापरयुग की आयु सीमा- 8,64,000 वर्ष है। 
त्रेता युग की आयु सीमा- 17,28,000 वर्ष है।
सत्युग की आयु सीमा- 34,56,000 वर्ष है।

६० सेकेण्ड का एक मिनट ६० मिनट का एक घण्टा, तीन घण्टे का एक प्रहर, चार प्रहर का दिन और चार प्रहर की रात्री अर्थात २४ घण्टे का एक दिन और एक रात्रि निर्धारित है। सात दिन मिलकर सप्ताह, १५ दिन शुक्ल पक्ष और १६ दिन का कृष्ण पक्ष माना जाता है। इसी प्रकार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष मिलकर एक माह होता है। दो माह मिलकर एक ऋतु होता है और तीन ऋतुएं मिलकर उत्तरायण और तीन ऋतुओं से दक्षिणायण कहलाता है। उत्तरायण और दक्षिणायण मिलकर एक वर्ष होता है। कलियुग में मनुष्य की आयु १०० वर्ष बताया गया है। इसी प्रकार द्वापर में मनुष्य की आयु १००० वर्ष है।त्रेता में १०,००० समझा जाता है और सत्युग में मनुष्य १,००,००० वर्षों तक जीवित रहते हैं।

इस तरह सत्युग, त्रेता, द्वापर, कलियुग मिलकर एक चतुर्युगी कहलाता है।

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